Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य तीसरा अध्याय (पोस्ट.०८)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
तीसरा अध्याय (पोस्ट.०८)

भक्तिके कष्टकी निवृत्ति

सूत उवाच –

यदा कृष्णो धरां त्यक्त्वा स्वपदं गन्तुमुद्यतः ।
एकादशं परिश्रुत्यापि उद्धवो वाक्यमब्रवीत् ॥ ५४ ॥

उद्धव उवाच –

त्वं तु यास्यसि गोविन्द भक्तकार्यं विधाय च ।
मच्चित्ते महती चिन्ता तां श्रुत्वा सुखमावह ॥ ५५ ॥
आगतोऽयं कलिर्घोरो भविष्यन्ति पुनः खलाः ।
तत्संगेनैव सन्तोऽपि गमिष्यन्ति उग्रतां यदा ॥ ५६ ॥
तदा भारवती भूमिः गोरूपेयं कमाश्रयेत् ।
अन्यो न दृश्यते त्राता त्वत्तः कमललोचन ॥ ५७ ॥
अतः सस्तु दयां कृत्वा भक्तवत्सल मा व्रज ।
भक्तार्थं सगुणो जातो निराकारोऽपि चिन्मयः ॥ ५८ ॥
त्वद् वियोगेन ते भक्ताः कथं स्थास्यन्ति भूतले ।
निर्गुणोपासने कष्टं अतः किंचिद् विचारय ॥ ५९ ॥

सूतजीने कहाशौनकजी ! जब भगवान्‌ श्रीकृष्ण इस धराधामको छोडक़र अपने नित्यधामको जाने लगे, तब उनके मुखारविन्दसे एकादश स्कन्धका ज्ञानोपदेश सुनकर भी उद्धवजीने पूछा ॥ ५४ ॥
उद्धवजी बोलेगोविन्द ! अब आप तो अपने भक्तोंका कार्य करके परमधामको पधारना चाहते हैं; किन्तु मेरे मनमें एक बड़ी चिन्ता है। उसे सुनकर आप मुझे शान्त कीजिये ॥ ५५ ॥ अब घोर कलिकाल आया ही समझिये, इसलिये संसारमें फिर अनेकों दुष्ट प्रकट हो जायँगे; उनके संसर्गसे जब अनेकों सत्पुरुष भी उग्र प्रकृतिके हो जायँगे, तब उनके भारसे दबकर यह गोरूपिणी पृथ्वी किसकी शरणमें जायगी ? कमलनयन ! मुझे तो आपको छोडक़र इसकी रक्षा करनेवाला कोई दूसरा नहीं दिखायी देता ॥ ५६-५७ ॥ इसलिये भक्तवत्सल ! आप साधुओंपर कृपा करके यहाँसे मत जाइये। भगवन् ! आपने निराकार और चिन्मात्र होकर भी भक्तोंके लिये ही तो यह सगुण रूप धारण किया है ॥ ५८ ॥ फिर भला, आपका वियोग होनेपर वे भक्तजन पृथ्वीपर कैसे रह सकेंगे ? निर्गुणोपासनामें तो बड़ा कष्ट है। इसलिये कुछ और विचार कीजिये ॥ ५९ ॥
हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से 


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