Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.१६)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.१६)

सप्ताहयज्ञ की विधि

ततोऽनमत्तत् चरणेषु नारदः
     तथा शुकादीनपि तापसांश्च ।
अथ प्रहृष्टाः परिनष्टमोहाः
     सर्व ययुः पीतकथामृतास्ते ॥ ९० ॥
भक्तिः सुताभ्यां सह रक्षिता सा
     शास्त्रे स्वकीयेऽपि तदा शुकेन ।
अतो हरिर्भागवतस्य सेवनात्
     चित्तं समायाति हि वैष्णवानाम् ॥ ९१ ॥
दारिद्र्यदुःखज्वरदाहितानां
     मायापिशाचीपरिमर्दितानाम्
संसारसिन्धौ परिपातितानां
     क्षेमाय वै भागवतं प्रगर्जति ॥ ९२ ॥

इसके पश्चात् नारदजी ने भगवान्‌ तथा उनके पार्षदों के चरणों को लक्ष्य करके प्रणाम किया और फिर शुकदेव जी आदि तपस्वियों को भी नमस्कार किया। कथामृत का पान करनेसे सब लोगों- को बड़ा ही आनन्द हुआ, उनका सारा मोह नष्ट हो गया। फिर वे सब लोग अपने-अपने स्थानों को चले गये ॥ ९० ॥ उस समय शुकदेवजीने भक्तिको उसके पुत्रोंसहित अपने शास्त्रमें स्थापित कर दिया। इसीसे भागवतका सेवन करनेसे श्रीहरि वैष्णवोंके हृदयमें आ विराजते हैं ॥ ९१ ॥ जो लोग दरिद्रताके दु:खज्वरकी ज्वालासे दग्ध हो रहे हैं, जिन्हें माया-पिशाचीने रौंद डाला है तथा जो संसार-समुद्रमें डूब रहे हैं, उनका कल्याण करनेके लिये श्रीमद्भागवत सिंहनाद कर रहा है ॥ ९२ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड 1535 से


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