Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.१०)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.१०)

सप्ताहयज्ञ की विधि
  
एवं नगाहयज्ञेऽस्मिन् समाप्ते श्रोतृभिस्तदा ।
पुस्तकस्य च वक्तुश्च पूजा कार्यातिभक्तितः ॥ ५६ ॥
प्रसादतुलसीमाला श्रोतृभ्यश्चाथ दीयताम् ।
मृदंगतालललितं कर्तव्यं कीर्तनं ततः ॥ ५७ ॥
जयशब्दं नमःशब्दं शंखशब्दं च कारयेत् ।
विप्रेभ्यो याचकेभ्यश्च वित्तं अन्नं च दीयताम् ॥ ५८ ॥
विरक्तश्चेत् भवेत् श्रोता गीता वाद्या परेऽहनि ।
गृहस्थश्चेत् तदा होमः कर्तव्यः कर्मशान्तये ॥ ५९ ॥
प्रतिश्लोकं तु जुहुयात् विधिना दशमस्य च ।
पायसं मधु सर्पिश्च तिलान् आदिकसंयुतम् ॥ ६० ॥
अथवा हवनं कुर्याद् गायत्र्या सुसमाहितः ।
तन्मयत्वात् पुराणस्य परमस्य च तत्त्वतः ॥ ६१ ॥

इस प्रकार जब सप्ताहयज्ञ समाप्त हो जाय, तब श्रोताओंको अत्यन्त भक्तिपूर्वक पुस्तक और वक्ताकी पूजा करनी चाहिये ॥ ५६ ॥ फिर वक्ता श्रोताओंको प्रसाद, तुलसी और प्रसादी मालाएँ दे तथा सब लोग मृदङ्ग और झाँझकी मनोहर ध्वनिसे सुन्दर कीर्तन करें ॥ ५७ ॥ जय-जयकार, नमस्कार और शङ्खध्वनिका घोष कराये तथा ब्राह्मण और याचकोंको धन और अन्न दे ॥ ५८ ॥ श्रोता विरक्त हो तो कर्मकी शान्तिके लिये दूसरे दिन गीतापाठ करे; गृहस्थ हो तो हवन करे ॥ ५९ ॥ उस हवनमें दशमस्कन्धका एक-एक श्लोक पढक़र विधिपूर्वक खीर, मधु, घृत, तिल और अन्नादि सामग्रियोंसे आहुति दे ॥ ६० ॥ अथवा एकाग्र चित्तसे गायत्री-मन्त्रद्वारा हवन करे; क्योंकि तत्त्वत: यह महापुराण गायत्री- स्वरूप ही है ॥ ६१ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से


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