||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.१०)
सप्ताहयज्ञ की विधि
एवं
नगाहयज्ञेऽस्मिन् समाप्ते श्रोतृभिस्तदा ।
पुस्तकस्य
च वक्तुश्च पूजा कार्यातिभक्तितः ॥ ५६ ॥
प्रसादतुलसीमाला
श्रोतृभ्यश्चाथ दीयताम् ।
मृदंगतालललितं
कर्तव्यं कीर्तनं ततः ॥ ५७ ॥
जयशब्दं
नमःशब्दं शंखशब्दं च कारयेत् ।
विप्रेभ्यो
याचकेभ्यश्च वित्तं अन्नं च दीयताम् ॥ ५८ ॥
विरक्तश्चेत्
भवेत् श्रोता गीता वाद्या परेऽहनि ।
गृहस्थश्चेत्
तदा होमः कर्तव्यः कर्मशान्तये ॥ ५९ ॥
प्रतिश्लोकं
तु जुहुयात् विधिना दशमस्य च ।
पायसं
मधु सर्पिश्च तिलान् आदिकसंयुतम् ॥ ६० ॥
अथवा
हवनं कुर्याद् गायत्र्या सुसमाहितः ।
तन्मयत्वात्
पुराणस्य परमस्य च तत्त्वतः ॥ ६१ ॥
इस प्रकार जब सप्ताहयज्ञ समाप्त हो जाय, तब श्रोताओंको अत्यन्त भक्तिपूर्वक पुस्तक और वक्ताकी पूजा करनी चाहिये ॥ ५६ ॥ फिर वक्ता श्रोताओंको प्रसाद, तुलसी और प्रसादी मालाएँ दे तथा सब लोग मृदङ्ग और झाँझकी मनोहर ध्वनिसे सुन्दर कीर्तन करें ॥ ५७ ॥ जय-जयकार, नमस्कार और शङ्खध्वनिका घोष कराये तथा ब्राह्मण और याचकोंको धन और अन्न दे ॥ ५८ ॥ श्रोता विरक्त हो तो कर्मकी शान्तिके लिये दूसरे दिन गीतापाठ करे; गृहस्थ हो तो हवन करे ॥ ५९ ॥ उस हवनमें दशमस्कन्धका एक-एक श्लोक पढक़र विधिपूर्वक खीर, मधु, घृत, तिल और अन्नादि सामग्रियोंसे आहुति दे ॥ ६० ॥ अथवा एकाग्र चित्तसे गायत्री-मन्त्रद्वारा हवन करे; क्योंकि तत्त्वत: यह महापुराण गायत्री- स्वरूप ही है ॥ ६१ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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