||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.११)
सप्ताहयज्ञ की विधि
होमाशक्तौ
बुधो हौम्यं दद्यात् तत्फल सिद्धये ।
नानाच्छिद्रनिरोधार्थं
न्यूनताधिकतानयोः ॥ ६२ ॥
दोषयोः
प्रशमार्थं च पठेत् नामसहस्रकम् ।
तेन
स्यात् सफलं सर्वं नास्त्यस्मादधिकं यतः ॥ ६३ ॥
द्वादश
ब्राह्मणान् पश्चात् भोजयेत् मधुपायसैः ।
दद्यात्
सुवर्णं धेनुं च व्रतपूर्णत्वहेतवे ॥ ६४ ॥
शक्तौ
पलत्रयमितं स्वर्णसिंहं विधाय च ।
तत्रास्य
पुस्तकं स्थाप्यं लिखितं ललिताक्षरम् ॥ ६५ ॥
संपूज्य
आवाहनाद्यैः तद् उपचारैः सदक्षिणम् ।
वस्त्रभूषण
गन्धाद्यैः पूजिताय यतात्मने ॥ ६६ ॥
आचार्याय
सुधीर्दत्त्वा मुक्तः स्याद् भवबंधनैः ।
एवं
कृते विधाने च सर्वपापनिवारणे ॥ ६७ ॥
फलदं
स्यात् पुराणं तु श्रीमद्भागवतं शुभम् ।
धर्मकामार्थमोक्षाणां
साधनं स्यात् न संशयः ॥ ६८ ॥
होम करनेकी शक्ति न
हो तो उसका फल प्राप्त करनेके लिये ब्राह्मणोंको हवनसामग्री दान करे तथा नाना
प्रकारकी त्रुटियोंको दूर करनेके लिये और विधिमें फिर जो न्यूनाधिकता रह गयी हो,
उसके दोषोंकी शान्तिके लिये विष्णुसहस्रनामका पाठ करे। उससे सभी
कर्म सफल हो जाते हैं; क्योंकि कोई भी कर्म इससे बढक़र नहीं
है ॥ ६२-६३ ॥ फिर बारह ब्राह्मणोंको खीर और मधु आदि उत्तम-उत्तम पदार्थ खिलाये तथा
व्रतकी पूर्तिके लिये गौ और सुवर्णका दान करे ॥ ६४ ॥ सामर्थ्य हो तो तीन तोले सोने
का एक सिंहासन बनवाये, उसपर सुन्दर अक्षरोंमें लिखी हुई
श्रीमद्भागवतकी पोथी रखकर उसकी आवाहनादि विविध उपचारोंसे पूजा करे और फिर
जितेन्द्रिय आचार्यको—उसका वस्त्र, आभूषण
एवं गन्धादिसे पूजनकर—दक्षिणाके सहित समर्पण कर दे ॥ ६५-६६ ॥
यों करनेसे वह बुद्धिमान् दाता जन्म- मरणके बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है। यह
सप्ताहपारायणकी विधि सब पापोंकी निवृत्ति करनेवाली है। इसका इस प्रकार ठीक-ठीक
पालन करनेसे यह मङ्गलमय भागवतपुराण अभीष्ट फल प्रदान करता है तथा अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष—चारोंकी
प्राप्तिका साधन हो जाता है—इसमें सन्देह नहीं ॥ ६७-६८ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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