||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०९)
सप्ताहयज्ञ की विधि
सत्यं
शौचं दयां मौनं आर्जवं विनयं तथा ।
उदारमानसं
तद्वत् एवं कुर्यात् कथाव्रती ॥ ५० ॥
दरिद्रश्च
क्षयी रोगी निर्भाग्यः पापकर्मवान् ।
अनपत्यो
मोक्षकामः श्रुणुयाच्च कथामिमाम् ॥ ५१ ॥
अपुष्पा
काकवन्ध्या च वन्ध्या या च मृतार्भका ।
स्रवत्
गर्भा च या नारी तया श्राव्या प्रयत्नतः ॥ ५२ ॥
एतेषु
विधिना श्रावे तदक्षयतरं भवेत् ।
अत्युत्तमा
कथा दिव्या कोटियज्ञफलप्रदा ॥ ५३ ॥
एवं
कृत्वा व्रतविधिं उद्यापनं अथाचरेत् ।
जन्माष्टमी
व्रतमिव कर्तव्यं फलकांक्षिभिः ॥ ५४ ॥
अकिंचनेषु
भक्तेषु प्रायो नोद्यापनाग्रहः ।
श्रवणेनैव
पूतास्ते निष्कामा वैष्णवा यतः ॥ ५५ ॥
सर्वदा सत्य,
शौच, दया, मौन, सरलता, विनय और उदारताका बर्ताव करना चाहिये ॥ ५० ॥
धनहीन, क्षयरोगी, किसी अन्य रोगसे
पीडि़त, भाग्यहीन, पापी, पुत्रहीन और मुमुक्षु भी यह कथा श्रवण करे ॥ ५१ ॥ जिस स्त्रीका रजोदर्शन
रुक गया हो, जिसके एक ही संतान होकर रह गयी हो, जो बाँझ हो, जिसकी संतान होकर मर जाती हो अथवा जिसका
गर्भ गिर जाता हो, वह यत्नपूर्वक इस कथाको सुने ॥ ५२ ॥ ये सब
यदि विधिवत् कथा सुनें तो इन्हें अक्षय फलकी प्राप्ति हो सकती है। यह अत्युत्तम
दिव्य कथा करोड़ों यज्ञोंका फल देनेवाली है ॥ ५३ ॥
इस प्रकार इस व्रतकी विधियोंका पालन करके फिर उद्यापन करे। जिन्हें इसके विशेष फलकी इच्छा हो, वे जन्माष्टमी-व्रतके समान ही इस कथाव्रतका उद्यापन करें ॥ ५४ ॥ किन्तु जो भगवान्के अकिञ्चन भक्त हैं, उनके लिये उद्यापनका कोई आग्रह नहीं है। वे श्रवणसे ही पवित्र हैं; क्योंकि वे तो निष्काम भगवद्भक्त हैं ॥ ५५ ॥
इस प्रकार इस व्रतकी विधियोंका पालन करके फिर उद्यापन करे। जिन्हें इसके विशेष फलकी इच्छा हो, वे जन्माष्टमी-व्रतके समान ही इस कथाव्रतका उद्यापन करें ॥ ५४ ॥ किन्तु जो भगवान्के अकिञ्चन भक्त हैं, उनके लिये उद्यापनका कोई आग्रह नहीं है। वे श्रवणसे ही पवित्र हैं; क्योंकि वे तो निष्काम भगवद्भक्त हैं ॥ ५५ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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