Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य चौथा अध्याय (पोस्ट.०२)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
चौथा अध्याय (पोस्ट.०२)

गोकर्णोपाख्यान प्रारम्भ

तदा जयजयारावो रसपुष्टिरलौकिकी ।
चूर्णप्रसून वृष्टिश्च मुहुः शंखरवोऽप्यभूत् ॥ ६ ॥
तत् सभासंस्थितानां च देहगेहात्मविस्मृतिः ।
दृष्ट्वा च तन्मयावस्थां नारदो वाक्यमब्रवीत् ॥ ७ ॥
अलौकिकोऽयं महिमा मुनीश्वराः
     सप्ताहजन्योऽद्य विलोकितो मया ।
मूढाः शठा ये पशुपक्षिणोऽत्र
     सर्वेऽपि निष्पापतमा भवन्ति ॥ ८ ॥
अतो नृलोके ननु नास्ति किंचित्
     चित्तस्य शोधाय कलौ पवित्रम् ।
अघौघविध्वंसकरं तथैव
     कथासमानं भुवि नास्ति चान्यत् ॥ ९ ॥
के के विशुद्ध्यन्ति वदन्तु मह्यं
     सप्ताहयज्ञेन कथामयेन ।
कृपालुभिर्लोकहितं विचार्य
     प्रकाशितः कोऽपि नवीनमार्गः ॥ १० ॥

प्रभुके प्रकट होते ही चारों ओर जय हो ! जय हो !!की ध्वनि होने लगी। उस समय भक्तिरसका अद्भुत प्रवाह चला, बार-बार अबीर-गुलाल और पुष्पोंकी वर्षा तथा शङ्ख- ध्वनि होने लगी ॥ ६ ॥ उस सभामें जो लोग बैठे थे, उन्हें अपने देह, गेह और आत्माकी भी कोई सुधि न रही। उनकी ऐसी तन्मयता देखकर नारदजी कहने लगे॥ ७ ॥ मुनीश्वरगण ! आज सप्ताहश्रवणकी मैंने यह बड़ी ही अलौकिक महिमा देखी। यहाँ तो जो बड़े मूर्ख, दुष्ट और पशु-पक्षी भी हैं, वे सभी अत्यन्त निष्पाप हो गये हैं ॥ ८ ॥ अत: इसमें संदेह नहीं कि कलिकाल में चित्त की शुद्धि के लिये इस भागवतकथा के समान मर्त्यलोकमें पापपुञ्जका नाश करनेवाला कोई दूसरा पवित्र साधन नहीं है ॥ ९ ॥
मुनिवर ! आपलोग बड़े कृपालु हैं, आपने संसारके कल्याणका विचार करके यह बिलकुल निराला ही मार्ग निकाला है। आप कृपया यह तो बताइये कि इस कथारूप सप्ताहयज्ञके द्वारा संसारमें कौन-कौन लोग पवित्र हो जाते हैं ॥ १० ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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