Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य तीसरा अध्याय (पोस्ट.११)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
तीसरा अध्याय (पोस्ट.११)

भक्तिके कष्ट की निवृत्ति

सकलभुवनमध्ये निर्धनास्तेऽपि धन्या
     निवसति हृदि येषां श्रीहरेर्भक्तिरेका ।
हरिरपि निजलोकं सर्वथातो विहाय
     प्रविशति हृदि तेषां भक्तिसूत्रोपनद्धः ॥ ७३ ॥

ब्रूमोऽद्य ते किमधिकं महमानमेवं
     ब्रह्मात्मकस्य भुवि भागवताभिधस्य ।
यत्संश्रयात् निगदिते लभते सुवक्ता
     श्रोतापि कृष्णसमतामलमन्यधर्मैः ॥ ७४ ॥

जिनके हृदयमें एकमात्र श्रीहरिकी भक्ति निवास करती है; वे त्रिलोकीमें अत्यन्त निर्धन होनेपर भी परम धन्य हैं; क्योंकि इस भक्तिकी डोरीसे बँधकर तो साक्षात् भगवान्‌ भी अपना परमधाम छोडक़र उनके हृदयमें आकर बस जाते हैं ॥ ७३ ॥ भूलोकमें यह भागवत साक्षात् परब्रह्मका विग्रह है, हम इसकी महिमा कहाँतक वर्णन करें। इसका आश्रय लेकर इसे सुनानेसे तो सुनने और सुनाने- वाले दोनोंको ही भगवान्‌ श्रीकृष्णकी समता प्राप्त हो जाती है। अत: इसे छोडक़र अन्य धर्मोंसे क्या प्रयोजन है ॥ ७४ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

इति श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे श्रीमद्‌भागवतमाहात्म्ये
भक्तिकष्टनिवर्तनं नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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