Thursday, December 7, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पहला अध्याय (पोस्ट.०६)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला अध्याय (पोस्ट.०६)

देवर्षि नारदकी भक्तिसे भेंट

शौनक उवाच –
लोकविग्रहमुक्तस्य नारदस्यास्थिरस्य च ।
विधिश्रवे कुतः प्रीतिः संयोगः कुत्र तैः सह ॥ २३ ॥

सूत उवाच –

अत्र ते कीर्तयिष्यामि भक्तियुक्तं कथानकम् ।
शुकेन मम यत्प्रोक्तं रहः शिष्यं विचार्य च ॥ २४ ॥
एकदा हि विशालायां चत्वार ऋषयोऽमलाः ।
सत्सङ्‌गार्थं समायाता ददृशुस्तत्र नारदम् ॥ २५ ॥

कुमाराः ऊचुः –
कथं ब्रह्मन् दीनमुखं कुतश्चिन्तातुरो भवान् ।
त्वरितं गम्यते कुत्र कुतश्चागमनं तव ॥ २६ ॥
इदानीं शून्यचित्तोऽसि गतवित्तो यथा जनः ।
तवेदं मुक्तसङ्‌गस्य नोचितं वद कारणम् ॥ २७ ॥

नारद उवाच –
अहं तु पृथिवीं यातो ज्ञात्वा सर्वोत्तममिति ।
पुष्करं च प्रयागं च काशीं गोदावरीं तथा ॥ २८ ॥
हरिक्षेत्रं कुरुक्षेत्रं श्रीरङ्‌गं सेतुबन्धनम् ।
एवमादिषु तीर्थेषु भ्रममाण इतस्ततः ॥ २९ ॥
नापश्यं कुत्रचित् शर्म मनस्संतोषकारकम् ।
कलिनाधर्ममित्रेण धरेयं बाधिताधुना ॥ ३० ॥

शौनकजीने पूछासांसारिक प्रपञ्चसे मुक्त एवं विचरणशील नारदजी का सनकादि के साथ संयोग कहाँ हुआ और विधि-विधानके श्रवणमें उनकी प्रीति कैसे हुई ? ॥ २३ ॥
सूतजीने कहाअब मैं तुम्हें वह भक्तिपूर्ण कथानक सुनाता हूँ, जो श्रीशुकदेवजीने मुझे अपना अनन्य शिष्य जानकर एकान्तमें सुनाया था ॥ २४ ॥ एक दिन विशालापुरीमें वे चारों निर्मल ऋषि सत्सङ्गके लिये आये। वहाँ उन्होंने नारदजीको देखा ॥ २५ ॥
सनकादिने पूछाब्रह्मन् ! आपका मुख उदास क्यों हो रहा है ? आप चिन्तातुर कैसे हैं ? इतनी जल्दी-जल्दी आप कहाँ जा रहे हैं ? और आपका आगमन कहाँसे हो रहा है ? ॥ २६ ॥ इस समय तो आप उस पुरुषके समान व्याकुल जान पड़ते हैं जिसका सारा धन लुट गया हो; आप-जैसे आसक्तिरहित पुरुषोंके लिये यह उचित नहीं है। इसका कारण बताइये ॥ २७ ॥
नारदजीने कहामैं सर्वोत्तम लोक समझकर पृथ्वीमें आया था। यहाँ पुष्कर, प्रयाग, काशी, गोदावरी (नासिक), हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, श्रीरङ्ग और सेतुबन्ध आदि कई तीर्थोंमें मैं इधर-उधर विचरता रहा; किन्तु मुझे कहीं भी मनको संतोष देनेवाली शान्ति नहीं मिली। इस समय अधर्म के सहायक कलियुग ने सारी पृथ्वी को पीडि़त कर रखा है ॥ २८३० ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535  से 


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