Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.०५)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०५)

सप्ताहयज्ञ की विधि

पितॄन् संतर्प्य शुद्ध्यर्थं प्रायश्चित्तं समाचरेत् ।
मण्डलं च प्रकर्तव्यं तत्र स्थाप्यो हरिस्तथा ॥ २५ ॥
कृष्णमुद्दिश्य मंत्रेण चरेत् पूजाविधिं क्रमात् ।
प्रदक्षिण नमस्कारान् पूजान्ते स्तुतिमाचरेत् ॥ २६ ॥
संसारसागरे मग्नं दीनं मां करुणानिधे ।
कर्ममोहगृहीताङ्‌गं मामुद्धर भवार्णवात् ॥ २७ ॥
श्रीमद्‌भागवतस्यापि ततः पूजा प्रयत्‍नतः ।
कर्तव्या विधिना प्रीत्या धूपदीपसमन्विता ॥ २८ ॥
ततस्तु श्रीफलं धृत्वा नमस्कारं समाचरेत् ।
स्तुतिः प्रसन्नचित्तेन कर्तव्या केवलं तदा ॥ २९ ॥
श्रीमद्‌भागवताख्योऽयं प्रत्यक्षः कृष्ण एव हि ।
स्वीकृतोऽसि मया नाथ मुक्त्यर्थं भवसागरे ॥ ३० ॥
मनोरथो मदीयोऽयं सफलः सर्वथा त्वया ।
निर्विघ्नेनैव कर्तव्य दासोऽहं तव केशव ॥ ३१ ॥
एवं दीनवचः प्रोच्य वक्तारं चाथ पूजयेत् ।
सम्भूष्य वस्त्रभूषाभिः पूजान्ते तं च संस्तवेत् ॥ ३२ ॥
शुकरूप प्रबोधज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
एतत्कथाप्रकाशेन मदज्ञानं विनाशय ॥ ३३ ॥

तदनन्तर पितृगणका तर्पण कर पूर्व पापोंकी शुद्धिके लिये प्रायश्चित्त करे और एक मण्डल बनाकर उसमें श्रीहरिको स्थापित करे ॥ २५ ॥ फिर भगवान्‌ श्रीकृष्णको लक्ष्य करके मन्त्रोच्चारणपूर्वक क्रमश: षोडशोपचारविधिसे पूजन करे और उसके पश्चात् प्रदक्षिणा तथा नमस्कारादि कर इस प्रकार स्तुति करे ॥ २६ ॥ करुणानिधान ! मैं संसार-सागरमें डूबा हुआ और बड़ा दीन हूँ। कर्मोंके मोहरूपी ग्राहने मुझे पकड़ रखा है। आप इस संसार-सागरसे मेरा उद्धार कीजिये॥ २७ ॥ इसके पश्चात् धूप-दीप आदि सामग्रियोंसे श्रीमद्भागवतकी भी बड़े उत्साह और प्रीतिपूर्वक विधि-विधानसे पूजा करे ॥ २८ ॥ फिर पुस्तकके आगे नारियल रखकर नमस्कार करे और प्रसन्नचित्तसे इस प्रकार स्तुति करे॥ २९ ॥ श्रीमद्भागवतके रूपमें आप साक्षात् श्रीकृष्णचन्द्र ही विराजमान हैं। नाथ ! मैंने भवसागरसे छुटकारा पानेके लिये आपकी शरण ली है ॥ ३० ॥ मेरा यह मनोरथ आप बिना किसी विघ्र-बाधाके साङ्गोपाङ्ग पूरा करें। केशव ! मैं आपका दास हूँ॥ ३१ ॥ इस प्रकार दीन वचन कहकर फिर वक्ताका पूजन करे। उसे सुन्दर वस्त्राभूषणोंसे विभूषित करे और फिर पूजाके पश्चात् उसकी इस प्रकार स्तुति करे॥ ३२ ॥ शुकस्वरूप भगवन् ! आप समझानेकी कलामें कुशल और सब शास्त्रोंमें पारंगत हैं; कृपया इस कथाको प्रकाशित करके मेरा अज्ञान दूर करें॥ ३३ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से


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