||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०५)
सप्ताहयज्ञ की विधि
पितॄन्
संतर्प्य शुद्ध्यर्थं प्रायश्चित्तं समाचरेत् ।
मण्डलं
च प्रकर्तव्यं तत्र स्थाप्यो हरिस्तथा ॥ २५ ॥
कृष्णमुद्दिश्य
मंत्रेण चरेत् पूजाविधिं क्रमात् ।
प्रदक्षिण
नमस्कारान् पूजान्ते स्तुतिमाचरेत् ॥ २६ ॥
संसारसागरे
मग्नं दीनं मां करुणानिधे ।
कर्ममोहगृहीताङ्गं
मामुद्धर भवार्णवात् ॥ २७ ॥
श्रीमद्भागवतस्यापि
ततः पूजा प्रयत्नतः ।
कर्तव्या
विधिना प्रीत्या धूपदीपसमन्विता ॥ २८ ॥
ततस्तु
श्रीफलं धृत्वा नमस्कारं समाचरेत् ।
स्तुतिः
प्रसन्नचित्तेन कर्तव्या केवलं तदा ॥ २९ ॥
श्रीमद्भागवताख्योऽयं
प्रत्यक्षः कृष्ण एव हि ।
स्वीकृतोऽसि
मया नाथ मुक्त्यर्थं भवसागरे ॥ ३० ॥
मनोरथो
मदीयोऽयं सफलः सर्वथा त्वया ।
निर्विघ्नेनैव
कर्तव्य दासोऽहं तव केशव ॥ ३१ ॥
एवं
दीनवचः प्रोच्य वक्तारं चाथ पूजयेत् ।
सम्भूष्य
वस्त्रभूषाभिः पूजान्ते तं च संस्तवेत् ॥ ३२ ॥
शुकरूप
प्रबोधज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
एतत्कथाप्रकाशेन
मदज्ञानं विनाशय ॥ ३३ ॥
तदनन्तर पितृगणका
तर्पण कर पूर्व पापोंकी शुद्धिके लिये प्रायश्चित्त करे और एक मण्डल बनाकर उसमें
श्रीहरिको स्थापित करे ॥ २५ ॥ फिर भगवान् श्रीकृष्णको लक्ष्य करके
मन्त्रोच्चारणपूर्वक क्रमश: षोडशोपचारविधिसे पूजन करे और उसके पश्चात् प्रदक्षिणा
तथा नमस्कारादि कर इस प्रकार स्तुति करे ॥ २६ ॥ ‘करुणानिधान ! मैं संसार-सागरमें डूबा हुआ और बड़ा दीन हूँ। कर्मोंके
मोहरूपी ग्राहने मुझे पकड़ रखा है। आप इस संसार-सागरसे मेरा उद्धार कीजिये’
॥ २७ ॥ इसके पश्चात् धूप-दीप आदि सामग्रियोंसे श्रीमद्भागवतकी भी
बड़े उत्साह और प्रीतिपूर्वक विधि-विधानसे पूजा करे ॥ २८ ॥ फिर पुस्तकके आगे
नारियल रखकर नमस्कार करे और प्रसन्नचित्तसे इस प्रकार स्तुति करे— ॥ २९ ॥ ‘श्रीमद्भागवतके रूपमें आप साक्षात्
श्रीकृष्णचन्द्र ही विराजमान हैं। नाथ ! मैंने भवसागरसे छुटकारा पानेके लिये आपकी
शरण ली है ॥ ३० ॥ मेरा यह मनोरथ आप बिना किसी विघ्र-बाधाके साङ्गोपाङ्ग पूरा करें।
केशव ! मैं आपका दास हूँ’ ॥ ३१ ॥ इस प्रकार दीन वचन कहकर फिर
वक्ताका पूजन करे। उसे सुन्दर वस्त्राभूषणोंसे विभूषित करे और फिर पूजाके पश्चात्
उसकी इस प्रकार स्तुति करे— ॥ ३२ ॥ ‘शुकस्वरूप
भगवन् ! आप समझानेकी कलामें कुशल और सब शास्त्रोंमें पारंगत हैं; कृपया इस कथाको प्रकाशित करके मेरा अज्ञान दूर करें’ ॥ ३३ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित
श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से
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