Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०७)


|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०७)

धुन्धुकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार

धन्या भागवती वार्ता प्रेतपीडाविनाशिनी ।
सप्ताहोऽपि तथा धन्यः कृष्णलोकफलप्रदः ॥ ५३ ॥
कम्पन्ते सर्वपापानि सप्ताहश्रवणे स्थिते ।
अस्माकं प्रलयं सद्यः कथा चेयं करिष्यति ॥ ५४ ॥
आर्द्रं शुष्कं लघु स्थूलं वाङ्‌मनः कर्मभिः कृतम् ।
श्रवणं विदहेत्पापं पावकं समिधो यथा ॥ ५५ ॥
अस्मिन् वै भारते वर्षे सूरिभिः देवसंसदि ।
अकथाश्राविणां पुंसां निष्फलं जन्म कीर्तितम् ॥ ५६ ॥
किं मोहतो रक्षितेन सुपुष्टेन बलीयसा ।
अध्रुवेण शरीरेण शुकशास्त्रकथां विना ॥ ५७ ॥

यह प्रेतपीड़ाका नाश करनेवाली श्रीमद्भागवतकी कथा धन्य है। तथा श्रीकृष्णचन्द्रके धामकी प्राप्ति करानेवाला इसका सप्ताह-पारायण भी धन्य है ! ॥ ५३ ॥ जब सप्ताह-श्रवण का योग लगता हैतब सब पाप थर्रा उठते हैं कि अब यह भागवतकी कथा जल्दी ही हमारा अन्त कर देगी ॥ ५४ ॥ जिस प्रकार आग गीली-सूखीछोटी-बड़ीसब तरहकी लकडिय़ोंको जला डालती हैउसी प्रकार यह सप्ताह-श्रवण मनवचन और कर्मद्वारा किये हुए नये- पुरानेछोटे-बड़ेसभी प्रकारके पापोंको भस्म कर देता है ॥ ५५ ॥
विद्वानों ने देवताओं की सभामें कहा है कि जो लोग इस भारतवर्ष में श्रीमद्भागवत की कथा नहीं सुनतेउनका जन्म वृथा ही है ॥ ५६ ॥ भलामोहपूर्वक लालन-पालन करके यदि इस अनित्य शरीरको हृष्ट-पुष्ट और बलवान् भी बना लिया तो भी श्रीमद्भागवतकी कथा सुने बिना इससे क्या लाभ हुआ ? ॥ ५७ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से




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