|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.०७)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
धन्या भागवती
वार्ता प्रेतपीडाविनाशिनी ।
सप्ताहोऽपि तथा
धन्यः कृष्णलोकफलप्रदः ॥ ५३ ॥
कम्पन्ते
सर्वपापानि सप्ताहश्रवणे स्थिते ।
अस्माकं प्रलयं
सद्यः कथा चेयं करिष्यति ॥ ५४ ॥
आर्द्रं शुष्कं
लघु स्थूलं वाङ्मनः कर्मभिः कृतम् ।
श्रवणं
विदहेत्पापं पावकं समिधो यथा ॥ ५५ ॥
अस्मिन् वै
भारते वर्षे सूरिभिः देवसंसदि ।
अकथाश्राविणां
पुंसां निष्फलं जन्म कीर्तितम् ॥ ५६ ॥
किं मोहतो
रक्षितेन सुपुष्टेन बलीयसा ।
अध्रुवेण शरीरेण
शुकशास्त्रकथां विना ॥ ५७ ॥
यह प्रेतपीड़ाका
नाश करनेवाली श्रीमद्भागवतकी कथा धन्य है। तथा श्रीकृष्णचन्द्रके धामकी प्राप्ति
करानेवाला इसका सप्ताह-पारायण भी धन्य है ! ॥ ५३ ॥ जब सप्ताह-श्रवण का योग लगता है, तब सब पाप थर्रा उठते हैं कि अब यह भागवतकी कथा जल्दी ही हमारा अन्त कर
देगी ॥ ५४ ॥ जिस प्रकार आग गीली-सूखी, छोटी-बड़ी—सब तरहकी लकडिय़ोंको जला डालती है, उसी प्रकार
यह सप्ताह-श्रवण मन, वचन और कर्मद्वारा किये हुए नये-
पुराने, छोटे-बड़े—सभी प्रकारके
पापोंको भस्म कर देता है ॥ ५५ ॥
विद्वानों ने
देवताओं की सभामें कहा है कि जो लोग इस भारतवर्ष में श्रीमद्भागवत की कथा नहीं
सुनते, उनका जन्म वृथा ही है ॥ ५६ ॥ भला, मोहपूर्वक लालन-पालन करके यदि इस अनित्य शरीरको हृष्ट-पुष्ट और बलवान् भी
बना लिया तो भी श्रीमद्भागवतकी कथा सुने बिना इससे क्या लाभ हुआ ? ॥ ५७ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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