Monday, November 19, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

हिरण्याक्ष के साथ वराहभगवान्‌ का युद्ध

श्रीभगवानुवाच –

सत्यं वयं भो वनगोचरा मृगा
     युष्मद्विधान्मृगये ग्रामसिंहान् ।
न मृत्युपाशैः प्रतिमुक्तस्य वीरा
     विकत्थनं तव गृह्णन्त्यभद्र ॥ १० ॥
एते वयं न्यासहरा रसौकसां
     गतह्रियो गदया द्रावितास्ते ।
तिष्ठामहेऽथापि कथञ्चिदाजौ
     स्थेयं क्व यामो बलिनोत्पाद्य वैरम् ॥ ११ ॥
त्वं पद्-रथानां किल यूथपाधिपो
     घटस्व नोऽस्वस्तय आश्वनूहः ।
संस्थाप्य चास्मान् प्रमृजाश्रु स्वकानां
     यः स्वां प्रतिज्ञां नातिपिपर्त्यसभ्यः ॥ १२ ॥

श्रीभगवान्‌ने कहाअरे ! सचमुच ही हम जंगली जीव हैं, जो तुझ-जैसे ग्राम-सिंहों (कुत्तों) को ढूँढ़ते फिरते हैं। दुष्ट ! वीर पुरुष तुझ-जैसे मृत्यु-पाशमें बँधे हुए अभागे जीवों की आत्मश्लाघापर ध्यान नहीं देते ॥ १० ॥ हाँ, हम रसातलवासियों की धरोहर चुराकर और लज्जा छोडक़र तेरी गदा के भयसे यहाँ भाग आये हैं। हममें ऐसी सामर्थ्य ही कहाँ कि तेरे-जैसे अद्वितीय वीरके सामने युद्धमें ठहर सकें। फिर भी हम जैसे-तैसे तेरे सामने खड़े हैं; तुझ-जैसे बलवानोंसे वैर बाँधकर हम जा भी कहाँ सकते हैं ? ॥ ११ ॥ तू पैदल वीरोंका सरदार है, इसलिये अब नि:शङ्क होकरउधेड़-बुन छोडक़र हमारा अनिष्ट करनेका प्रयत्न कर और हमें मारकर अपने भाई-बन्धुओंके आँसू पोंछ। अब इसमें देर न कर। जो अपनी प्रतिज्ञाका पालन नहीं करता, वह असभ्य हैभले आदमियोंमें बैठनेलायक नहीं है ॥ १२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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