Thursday, November 1, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

                            
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

जय-विजय का वैकुण्ठ से पतन

ब्रह्मोवाच –

अथ तस्योशतीं देवीं ऋषिकुल्यां सरस्वतीम् ।
नास्वाद्य मन्युदष्टानां तेषां आत्माप्यतृप्यत ॥ १३ ॥
सतीं व्यादाय शृण्वन्तो लघ्वीं गुर्वर्थगह्वराम् ।
विगाह्यागाधगम्भीरां न विदुस्तच्चिकीर्षितम् ॥ १४ ॥
ते योगमाययारब्ध पारमेष्ठ्यमहोदयम् ।
प्रोचुः प्राञ्जलयो विप्राः प्रहृष्टाः क्षुभितत्वचः ॥ १५ ॥

श्रीब्रह्माजी कहते हैंदेवताओ ! सनकादि मुनि क्रोधरूप सर्प से डसे हुए थे, तो भी उनका चित्त अन्त:करणको प्रकाशित करनेवाली भगवान्‌की मन्त्रमयी सुमधुर वाणी सुनते-सुनते तृप्त नहीं हुआ ॥ १३ ॥ भगवान्‌की उक्ति बड़ी ही मनोहर और थोड़े अक्षरोंवाली थी; किन्तु वह इतनी अर्थपूर्ण, सारयुक्त, दुर्विज्ञेय और गम्भीर थी कि बहुत ध्यान देकर सुनने और विचार करने पर भी वे यह न जान सके कि भगवान्‌ क्या करना चाहते हैं ॥ १४ ॥ भगवान्‌ की इस अद्भुत उदारता को देखकर वे बहुत आनन्दित हुए और उनका अङ्ग-अङ्ग पुलकित हो गया। फिर योगमायाके प्रभावसे अपने परम ऐश्वर्यका प्रभाव प्रकट करनेवाले प्रभुसे वे हाथ जोडक़र कहने लगे ॥ १५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से 



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...