Monday, November 19, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

हिरण्याक्ष के साथ वराहभगवान्‌ का युद्ध

मैत्रेय उवाच ।

तदेवमाकर्ण्य जलेशभाषितं
     महामनास्तद् विगणय्य दुर्मदः ।
हरेर्विदित्वा गतिमङ्‌ग नारदाद्
     रसातलं निर्विविशे त्वरान्वितः ॥ १ ॥
ददर्श तत्राभिजितं धराधरं
     प्रोन्नीयमान अवनिं अग्रदंष्ट्रया ।
मुष्णन्तमक्ष्णा स्वरुचोऽरुणश्रिया
     जहास चाहो वनगोचरो मृगः ॥ २ ॥
आहैनमेह्यज्ञ महीं विमुञ्च नो
     रसौकसां विश्वसृजेयमर्पिता ।
न स्वस्ति यास्यस्यनया ममेक्षतः
     सुराधमासादितसूकराकृते ॥ ३ ॥
त्वं नः सपत्‍नैः अभवाय किं भृतो
     यो मायया हन्त्यसुरान् परोक्षजित् ।
त्वां योगमायाबलमल्पपौरुषं
     संस्थाप्य मूढ प्रमृजे सुहृच्छुचः ॥ ४ ॥
त्वयि संस्थिते गदया शीर्णशीर्षणि
     अस्मद्‍भुजच्युतया ये च तुभ्यम् ।
बलिं हरन्ति ऋषयो ये च देवाः
     स्वयं सर्वे न भविष्यन्त्यमूलाः ॥ ५ ॥

श्रीमैत्रेयजी ने कहातात ! वरुणजी की यह बात सुनकर वह मदोन्मत्त दैत्य बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने उनके इस कथनपर कि तू उनके हाथसे मारा जायगाकुछ भी ध्यान नहीं दिया और चट नारदजी से श्रीहरि का पता लगाकर रसातल में पहुँच गया ॥ १ ॥ वहाँ उसने विश्वविजयी वराहभगवान्‌को अपनी दाढ़ोंकी नोकपर पृथ्वीको ऊपरकी ओर ले जाते हुए देखा। वे अपने लाल- लाल चमकीले नेत्रोंसे उसके तेजको हर लेते थे। उन्हें देखकर वह खिलखिलाकर हँस पड़ा और बोला, ‘अरे ! यह जंगली पशु यहाँ जलमें कहाँ से आया॥ २ ॥ फिर वराहजी से कहा, ‘अरे नासमझ ! इधर आ, इस पृथ्वीको छोड़ दे; इसे विश्वविधाता ब्रह्माजी ने हम रसातलवासियों के हवाले कर दिया है । रे सूकररूपधारी सुराधम ! मेरे देखते-देखते तू इसे लेकर कुशलपूर्वक नहीं जा सकता ॥ ३ ॥ तू मायासे लुक-छिपकर ही दैत्योंको जीत लेता और मार डालता है। क्या इसीसे हमारे शत्रुओंने हमारा नाश करानेके लिये तुझे पाला है ? मूढ़ ! तेरा बल तो योगमाया ही है; और कोई पुरुषार्थ तुझमें थोड़े ही हैं। आज तुझे समाप्तकर मैं अपने बन्धुओंका शोक दूर करूँगा ॥ ४ ॥ जब मेरे हाथसे छूटी हुई गदाके प्रहारसे सिर फट जानेके कारण तू मर जायगा, तब तेरी आराधना करनेवाले जो देवता और ऋषि हैं, वे सब भी जड़ कटे हुए वृक्षोंकी भाँति स्वयं ही नष्ट हो जायँगे॥ ५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...