॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - बारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०४)
सृष्टिका
विस्तार
अथाभिध्यायतः
सर्गं दश पुत्राः प्रजज्ञिरे ।
भगवत्
शक्तियुक्तस्य लोकसन्तानहेतवः ॥ २१ ॥
मरीचिरत्र्यङ्गिरसौ
पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः ।
भृगुर्वसिष्ठो
दक्षश्च दशमस्तत्र नारदः ॥ २२ ॥
उत्सङ्गान्नारदो
जज्ञे दक्षोऽङ्गुष्ठात्स्वयम्भुवः ।
प्राणाद्वसिष्ठः
सञ्जातो भृगुस्त्वचि करात्क्रतुः ॥ २३ ॥
पुलहो
नाभितो जज्ञे पुलस्त्यः कर्णयो: ऋषिः ।
अङ्गिरा
मुखतोऽक्ष्णोऽत्रिः मरीचिर्मनसोऽभवत् ॥ २४ ॥
धर्मः
स्तनाद् दक्षिणतो यत्र नारायणः स्वयम् ।
अधर्मः
पृष्ठतो यस्मात् मृत्युर्लोकभयङ्करः ॥ २५ ॥
हृदि
कामो भ्रुवः क्रोधो लोभश्चाधरदच्छदात् ।
आस्याद्
वाक्सिन्धवो मेढ्रान् निर्ऋतिः पायोरघाश्रयः ॥ २६ ॥
छायायाः
कर्दमो जज्ञे देवहूत्याः पतिः प्रभुः ।
मनसो
देहतश्चेदं जज्ञे विश्वकृतो जगत् ॥ २७ ॥
इसके
पश्चात् जब भगवान् की शक्ति से सम्पन्न ब्रह्माजी ने सृष्टि के लिये सङ्कल्प किया, तब उनके दस पुत्र और उत्पन्न हुए। उनसे लोक की बहुत वृद्धि हुई ॥ २१ ॥
उनके नाम मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा,
पुलस्त्य, पुलह, क्रतु,
भृगु, वसिष्ठ, दक्ष और
दसवें नारद थे ॥ २२ ॥ इनमें नारद जी प्रजापति ब्रह्माजी की गोद से, दक्ष अँगूठे से, वसिष्ठ प्राण से, भृगु त्वचा से, क्रतु हाथ से, पुलह
नाभि से, पुलस्त्य ऋषि कानों से, अङ्गिरा
मुख से, अत्रि नेत्रोंसे और मरीचि मन से उत्पन्न हुए ॥ २३-२४ ॥ फिर उनके
दायें स्तन से धर्म उत्पन्न हुआ, जिसकी पत्नी मूर्ति से
स्वयं नारायण अवतीर्ण हुए तथा उनकी पीठ से अधर्म का जन्म हुआ और उससे संसार को
भयभीत करनेवाला मृत्यु उत्पन्न हुआ ॥ २५ ॥ इसी प्रकार ब्रह्माजीके हृदयसे काम,
भौंहों से क्रोध, नीचे के होठ से लोभ, मुख से वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती, लिङ्ग से
समुद्र, गुदा से पापका निवासस्थान (राक्षसोंका अधिपति)
निर्ऋति ॥ २६ ॥ छाया से देवहूति के पति भगवान् कर्दम जी उत्पन्न हुए। इस तरह यह
सारा जगत् जगत्-कर्ता ब्रह्माजी के शरीर और मन से उत्पन्न हुआ ॥ २७ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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