Sunday, September 9, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

सृष्टिका विस्तार

तस्योष्णिगासील्लोमभ्यो गायत्री च त्वचो विभोः ।
त्रिष्टुम्मांसात्स्नुतोऽनुष्टुब् जगत्यस्थ्नः प्रजापतेः ॥ ४५ ॥
मज्जायाः पङ्‌क्तिरुत्पन्ना बृहती प्राणतोऽभवत् ।
स्पर्शस्तस्याभवज्जीवः स्वरो देह उदाहृत ॥ ४६ ॥
ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहुः अन्तःस्था बलमात्मनः ।
स्वराः सप्त विहारेण भवन्ति स्म प्रजापतेः ॥ ४७ ॥
शब्दब्रह्मात्मनस्तस्य व्यक्ताव्यक्तात्मनः परः ।
ब्रह्मावभाति विततो नानाशक्त्युपबृंहितः ॥ ४८ ॥

उनके रोमों से उष्णिक्, त्वचा से गायत्री, मांस से त्रिष्टुप्, स्नायु से अनुष्टुप्, अस्थियों से जगती, मज्जा से पंक्ति और प्राणों से बृहती छन्द उत्पन्न हुआ। ऐसे ही उनका जीव स्पर्शवर्ण (कवर्गादि पञ्चवर्ग) और देह स्वरवर्ण (अकारादि) कहलाया॥४५-४६॥उनकी इन्द्रियों को ऊष्मवर्ण (श ष स ह) और बल को अन्त:स्थ (य र ल व) कहते हैं, तथा उनकी क्रीडा से निषाद, ऋषभ, गान्धार, षड्ज, मध्यम, धैवत और पञ्चमये सात स्वर हुए ॥ ४७ ॥ हे तात ! ब्रह्मा जी शब्दब्रह्मस्वरूप हैं। वे वैखरीरूप से व्यक्त और ओङ्काररूप से अव्यक्त हैं। तथा उनसे परे जो सर्वत्र परिपूर्ण परब्रह्म है, वही अनेकों प्रकारकी शक्तियों से विकसित होकर इन्द्रादि रूपोंमें भास रहा है॥४८॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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