Tuesday, August 28, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन

विदुर उवाच -

अन्तर्हिते भगवति ब्रह्मा लोकपितामहः ।
प्रजाः ससर्ज कतिधा दैहिकीर्मानसीर्विभुः ॥ १ ॥
ये च मे भगवन्पृष्टाः त्वय्यर्था बहुवित्तम ।
तान्वदस्वानुपूर्व्येण छिन्धि नः सर्वसंशयान् ॥ २ ॥

सूत उवाच –

एवं सञ्चोदितस्तेन क्षत्त्रा कौषारवो मुनिः ।
प्रीतः प्रत्याह तान् प्रश्नान् हृदिस्थानथ भार्गव ॥ ३ ॥

मैत्रेय उवाच –

विरिञ्चोऽपि तथा चक्रे दिव्यं वर्षशतं तपः ।
आत्मनि आत्मानमावेश्य यथाह भगवान् अजः ॥ ४ ॥
तद् विलोक्याब्जसंभूतो वायुना यदधिष्ठितः ।
पद्मं अम्भश्च तत्काल कृतवीर्येण कम्पितम् ॥ ५ ॥

विदुरजी ने कहामुनिवर ! भगवान्‌ नारायण  के अन्तर्धान हो जानेपर सम्पूर्ण लोकों के पितामह ब्रह्माजी ने अपने देह और मन से कितने प्रकार की सृष्टि उत्पन्न की ? ॥ १ ॥ भगवन् ! इनके सिवा मैंने आपसे और जो-जो बातें पूछी हैं, उन सबका भी क्रमश: वर्णन कीजिये और मेरे सब संशयों को दूर कीजिये; क्योंकि आप सभी बहुज्ञों में श्रेष्ठ हैं ॥ २ ॥
सूतजी कहते हैंशौनकजी ! विदुरजी के इस प्रकार पूछनेपर मुनिवर मैत्रेय जी बड़े प्रसन्न हुए और अपने हृदयमें स्थित उन प्रश्नों का इस प्रकार उत्तर देने लगे ॥ ३ ॥
श्रीमैत्रेयजीने कहाअजन्मा भगवान्‌ श्रीहरि ने जैसा कहा था, ब्रह्माजी ने भी उसी प्रकार चित्त को अपने आत्मा श्रीनारायण में लगाकर सौ दिव्य वर्षोंतक तप किया ॥ ४ ॥ ब्रह्माजीने देखा कि प्रलय- कालीन प्रबल वायुके झकोरोंसे, जिससे वे उत्पन्न हुए हैं तथा जिसपर वे बैठे हुए हैं वह कमल तथा जल काँप रहे हैं ॥ ५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...