Monday, July 9, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०२)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०२)

विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन

करोति कर्माणि कृतावतारो
     यान्यात्मतंत्रो भगवान् त्र्यधीशः ।
यथा ससर्जाग्र इदं निरीहः
     संस्थाप्य वृत्तिं जगतो विधत्ते ॥ ५ ॥
यथा पुनः स्वे ख इदं निवेश्य
     शेते गुहायां स निवृत्तवृत्तिः ।
योगेश्वराधीश्वर एक एतद्
     अनुप्रविष्टो बहुधा यथाऽऽसीत् ॥ ६ ॥
क्रीडन् विधत्ते द्विजगोसुराणां
     क्षेमाय कर्माण्यवतारभेदैः ।
मनो न तृप्यत्यपि शृण्वतां नः
     सुश्लोकमौलेश्चरितामृतानि ॥ ७ ॥
यैस्तत्त्वभेदैः अधिलोकनाथो
     लोकानलोकान् सह लोकपालान् ।
अचीकॢपद्यत्र हि सर्वसत्त्व
     निकायभेदोऽधिकृतः प्रतीतः ॥ ८ ॥

त्रिलोकीके नियन्ता और परम स्वतन्त्र श्रीहरि अवतार लेकर जो-जो लीलाएँ करते हैं; जिस प्रकार अकर्ता होकर भी उन्होंने कल्प के आरम्भ में इस सृष्टिकी रचना की, जिस प्रकार इसे स्थापित कर वे जगत् के  जीवों की जीविका का विधान करते हैं, फिर जिस प्रकार इसे अपने हृदयाकाश में लीनकर वृत्तिशून्य हो योगमाया का आश्रय लेकर शयन करते हैं और जिस प्रकार वे योगेश्वरेश्वर प्रभु एक होने पर भी इस ब्रह्माण्डमें अन्तर्यामीरूप से अनुप्रविष्ट होकर अनेकों रूपों में प्रकट होते हैंवह सब रहस्य आप हमें समझाइये ॥ ५-६ ॥ ब्राह्मण, गौ और देवताओं के कल्याणके लिये जो अनेकों अवतार धारण करके लीला से ही नाना प्रकारके दिव्य कर्म करते हैं, वे भी हमें सुनाइये। यशस्वियोंके मुकुटमणि श्रीहरि के लीलामृत का पान करते-करते हमारा मन तृप्त नहीं होता ॥ ७ ॥ हमें यह भी सुनाइये कि उन समस्त लोकपतियोंके स्वामी श्रीहरिने इन लोकों, लोकपालों और लोकालोक-पर्वतसे बाहरके भागोंको, जिनमें ये सब प्रकारके प्राणियोंके अधिकारानुसार भिन्न- भिन्न भेद प्रतीत हो रहे हैं, किन तत्त्वोंसे रचा है ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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