॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - नवाँ
अध्याय..(पोस्ट०९)
ब्रह्माजी
द्वारा भगवान्की स्तुति
ब्रह्मोवाच
–
यन्नाभिपद्मभवनाद्
अहमासमीड्य ।
लोकत्रयोपकरणो यदनुग्रहेण ।
तस्मै
नमस्त उदरस्थभवाय योग ।
निद्रावसानविकसन् नलिनेक्षणाय ॥ २१ ॥
सोऽयं
समस्तजगतां सुहृदेक आत्मा ।
सत्त्वेन यन्मृडयते भगवान् भगेन ।
तेनैव
मे दृशमनुस्पृशताद्यथाहं ।
स्रक्ष्यामि पूर्ववदिदं प्रणतप्रियोऽसौ ॥ २२
॥
आपके
नाभिकमलरूप भवन से मेरा जन्म हुआ है। यह सम्पूर्ण विश्व आपके उदर में समाया हुआ
है। आपकी कृपा से ही मैं त्रिलोकी की रचनारूप उपकार में प्रवृत्त हुआ हूँ । इस समय
योगनिद्रा का अन्त हो जानेके कारण आपके नेत्र-कमल विकसित हो रहे हैं, आपको मेरा नमस्कार है ॥ २१ ॥ आप सम्पूर्ण जगत् के एकमात्र सुहृद् और आत्मा
हैं तथा शरणागतोंपर कृपा करनेवाले हैं। अत: अपने जिस ज्ञान और ऐश्वर्य से आप
विश्वको आनन्दित करते हैं, उसी से मेरी बुद्धि को भी युक्त
करें—जिससे मैं पूर्वकल्पके समान इस समय भी जगत् की रचना कर सकूँ ॥ २२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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