Sunday, July 29, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

ब्रह्माजी द्वारा भगवान्‌की स्तुति

ब्रह्मोवाच –

नातिप्रसीदति तथोपचितोपचारैः ।
    आराधितः सुरगणैर्हृदि बद्धकामैः ।
यत्सर्वभूतदययासदलभ्ययैको ।
    नानाजनेष्ववहितः सुहृदन्तरात्मा ॥ १२ ॥
पुंसामतो विविधकर्मभिरध्वराद्यैः ।
    दानेन चोग्रतपसा परिचर्यया च ।
आराधनं भगवतस्तव सत्क्रियार्थो ।
    धर्मोऽर्पितः कर्हिचिद् ध्रियते न यत्र ॥ १३ ॥
शश्वत्स्वरूपमहसैव निपीतभेद ।
    मोहाय बोधधिषणाय नमः परस्मै ।
विश्वोद्‍भवस्थितिलयेषु निमित्तलीला ।
    रासाय ते नम इदं चकृमेश्वराय ॥ १४ ॥

भगवन् ! आप एक हैं तथा सम्पूर्ण प्राणियों के अन्त:करणों में स्थित उनके परम हितकारी अन्तरात्मा हैं। इसलिये यदि देवतालोग भी हृदयमें तरह-तरहकी कामनाएँ रखकर भाँति-भाँतिकी विपुल सामग्रियोंसे आपका पूजन करते हैं, तो उससे आप उतने प्रसन्न नहीं होते जितने सब प्राणियोंपर दया करनेसे होते हैं। किन्तु वह सर्वभूतदया असत् पुरुषोंको अत्यन्त दुर्लभ है ॥ १२ ॥ जो कर्म आपको अर्पण कर दिया जाता है, उसका कभी नाश नहीं होतावह अक्षय हो जाता है। अत: नाना प्रकारके कर्मयज्ञ, दान, कठिन तपस्या और व्रतादिके द्वारा आपकी प्रसन्नता प्राप्त करना ही मनुष्यका सबसे बड़ा कर्मफल है; क्योंकि आपकी प्रसन्नता होनेपर ऐसा कौन फल है जो सुलभ नहीं हो जाता ॥ १३ ॥ आप सर्वदा अपने स्वरूपके प्रकाशसे ही प्राणियोंके भेद-भ्रमरूप अन्धकारका नाश करते रहते हैं तथा ज्ञानके अधिष्ठान साक्षात् परमपुरुष हैं; मैं आपको नमस्कार करता हूँ। संसारकी उत्पत्ति, स्थिति और संहारके निमित्तसे जो मायाकी लीला होती है, वह आपका ही खेल है; अत: आप परमेश्वरको मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ ॥ १४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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