Sunday, July 29, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

ब्रह्माजी द्वारा भगवान्‌की स्तुति

ब्रह्मोवाच –

यस्यावतार गुणकर्मविडम्बनानि ।
    नामानि येऽसुविगमे विवशा गृणन्ति ।
तेऽनैकजन्मशमलं सहसैव हित्वा ।
    संयान्त्यपावृतामृतं तमजं प्रपद्ये ॥ १५ ॥
यो वा अहं च गिरिशश्च विभुः स्वयं च ।
    स्थित्युद्‍भवप्रलयहेतव आत्ममूलम् ।
भित्त्वा त्रिपाद्‌ववृध एक उरुप्ररोहः ।
    तस्मै नमो भगवते भुवनद्रुमाय ॥ १६ ॥

जो लोग प्राणत्याग करते समय आपके अवतार, गुण और कर्मोंको सूचित करनेवाले देवकीनन्दन, जनार्दन, कंसनिकन्दन आदि नामोंका विवश होकर भी उच्चारण करते हैं, वे अनेकों जन्मोंके पापों से तत्काल छूटकर मायादि आवरणों से रहित ब्रह्मपद प्राप्त करते हैं। आप नित्य अजन्मा हैं, मैं आपकी शरण लेता हूँ ॥ १५ ॥ भगवन् ! इस विश्ववृक्ष के रूप में आप ही विराजमान हैं। आप ही अपनी मूलप्रकृति को स्वीकार करके जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के लिये मेरे, अपने और महादेवजी के रूप में तीन प्रधान शाखाओं में विभक्त हुए हैं और फिर प्रजापति एवं मनु आदि शाखा-प्रशाखाओं के रूप में फैलकर बहुत विस्तृत हो गये हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥ १६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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