॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - पाँचवा
अध्याय..(पोस्ट०७)
विदुरजीका
प्रश्न और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन
कालवृत्त्या
तु मायायां गुणमय्यामधोक्षजः ।
पुरुषेणात्मभूतेन
वीर्यमाधत्त वीर्यवान् ॥ २६ ॥
ततोऽभवन्
महत्तत्त्वं अव्यक्तात् कालचोदितात् ।
विज्ञानात्माऽऽत्मदेहस्थं
विश्वं व्यञ्जन् तमोनुदः ॥ २७ ॥
सोऽप्यंशगुणकालात्मा
भगवद् दृष्टिगोचरः ।
आत्मानं
व्यकरोद् आत्मा विश्वस्यास्य सिसृक्षया ॥ २८ ॥
महत्तत्त्वाद्
विकुर्वाणाद् अहंतत्त्वं व्यजायत ।
कार्यकारणकर्त्रात्मा
भूतेन्द्रियमनोमयः ॥ २९ ॥
वैकारिकस्तैजसश्च
तामसश्चेत्यहं त्रिधा ।
अहंतत्त्वाद्
विकुर्वाणात् मनो वैकारिकात् अभूत् ।
वैकारिकाश्च
ये देवा अर्थाभिव्यञ्जनं यतः ॥ ३० ॥
तैजसानि
इन्द्रियाण्येव ज्ञानकर्ममयानि च ।
तामसो
भूतसूक्ष्मादिः यतः खं लिङ्गमात्मनः ॥ ३१ ॥
कालशक्ति
से जब यह त्रिगुणमयी माया क्षोभ को प्राप्त हुई, तब उन
इन्द्रियातीत चिन्मय परमात्मा ने अपने अंश पुरुषरूप से उसमें चिदाभासरूप बीज
स्थापित किया ॥ २६ ॥ तब काल की प्रेरणा से उस अव्यक्त माया से महत्तत्त्व प्रकट
हुआ। वह मिथ्या अज्ञान का नाशक होने के कारण विज्ञानस्वरूप और अपने में सूक्ष्मरूप
से स्थित प्रपञ्च की अभिव्यक्ति करनेवाला था ॥ २७ ॥ फिर चिदाभास, गुण और कालके अधीन उस महत्तत्त्वने भगवान्की दृष्टि पडऩेपर इस विश्वकी
रचनाके लिये अपना रूपान्तर किया ॥ २८ ॥ महत्तत्त्वके विकृत होनेपर अहंकारकी
उत्पत्ति हुई—जो कार्य (अधिभूत), कारण
(अध्यात्म) और कत्र्ता (अधिदैव) रूप होनेके कारण भूत, इन्द्रिय
और मनका कारण है ॥ २९ ॥ वह अहंकार वैकारिक (सात्त्विक), तैजस
(राजस) और तामस भेदसे तीन प्रकारका है; अत: अहंतत्त्वमें
विकार होनेपर वैकारिक अहंकारसे मन, और जिनसे विषयोंका ज्ञान
होता है वे इन्द्रियोंके अधिष्ठाता देवता हुए ॥ ३० ॥ तैजस अहंकारसे
ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ हुर्ईं तथा तामस अहंकारसे सूक्ष्म भूतोंका कारण
शब्दतन्मात्र हुआ, और उससे दृष्टान्तरूपसे आत्माका बोध
करानेवाला आकाश उत्पन्न हुआ ॥ ३१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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