Sunday, May 20, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट०८)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट०८)

उद्धवजीसे विदा होकर विदुरजीका मैत्रेय ऋषिके पास जाना

श्रीशुक उवाच –

इति सह विदुरेण विश्वमूर्तेः
     गुणकथया सुधया प्लावितोरुतापः ।
क्षणमिव पुलिने यमस्वसुस्तां
     समुषित औपगविर्निशां ततोऽगात् ॥ २७ ॥
राजोवाच -
निधनमुपगतेषु वृष्णिभोजेषु
     अधिरथयूथपयूथपेषु मुख्यः ।
स तु कथमवशिष्ट उद्धवो
     यद्धरिरपि तत्यज आकृतिं त्र्यधीशः ॥ २८ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंइस प्रकार विदुरजी के साथ विश्वमूर्ति भगवान्‌ श्रीकृष्णके गुणोंकी चर्चा होनेसे उस कथामृतके द्वारा उद्धवजीका वियोगजनित महान् ताप शान्त हो गया। यमुनाजी के तीर पर उनकी वह रात्रि एक क्षणके समान बीत गयी। फिर प्रात:काल होते ही वे वहाँ से चल दिये ॥ २७ ॥
राजा परीक्षित्‌ने पूछाभगवन् ! वृष्णिकुल और भोजवंशके सभी रथी और यूथपतियों के भी यूथपति नष्ट हो गये थे। यहाँ तक कि त्रिलोकी नाथ श्रीहरि को भी अपना वह रूप छोडऩा पड़ा था। फिर उन सबके मुखिया उद्धवजी ही कैसे बच रहे ? ॥ २८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...