Sunday, May 20, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट०७)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट०७)

उद्धवजीसे विदा होकर विदुरजीका मैत्रेय ऋषिके पास जाना

श्रीशुक उवाच -
इति उद्धवाद् उपाकर्ण्य सुहृदां दुःसहं वधम् ।
ज्ञानेनाशमयत् क्षत्ता शोकं उत्पतितं बुधः ॥ २३ ॥
स तं महाभागवतं व्रजन्तं कौरवर्षभः ।
विश्रम्भाद् अभ्यधत्तेदं मुख्यं कृष्णपरिग्रहे ॥ २४ ॥

विदुर उवाच -
ज्ञानं परं स्वात्मरहःप्रकाशं
     यदाह योगेश्वर ईश्वरस्ते ।
वक्तुं भवान्नोऽर्हति यद्धि विष्णोः
     भृत्याः स्वभृत्यार्थकृतश्चरन्ति ॥ २५ ॥

उद्धव उवाच ।
ननु ते तत्त्वसंराध्य ऋषिः कौषारवोऽन्ति मे ।
साक्षाद् भगवतादिष्टो मर्त्यलोकं जिहासता ॥ २६ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंइस प्रकार उद्धवजी के मुखसे अपने प्रिय बन्धुओं के विनाश का असह्य समाचार सुनकर परम ज्ञानी विदुरजी को जो शोक उत्पन्न हुआ, उसे उन्होंने ज्ञानद्वारा शान्त कर दिया ॥ २३ ॥ जब भगवान्‌ श्रीकृष्ण के परिकरों में प्रधान महाभागवत उद्धवजी बदरिकाश्रम की ओर जाने लगे, तब कुरुश्रेष्ठ विदुरजी ने श्रद्धापूर्वक उनसे पूछा ॥ २४ ॥
विदुरजीने कहाउद्धवजी ! योगेश्वर भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने अपने स्वरूप के गूढ़ रहस्य को प्रकट करनेवाला जो परमज्ञान आपसे कहा था, वह आप हमें भी सुनाइये; क्योंकि भगवान्‌ के सेवक तो अपने सेवकों का कार्य सिद्ध करनेके लिये ही विचरा करते हैं ॥ २५ ॥
उद्धवजीने कहाउस तत्त्वज्ञान के लिये आपको मुनिवर मैत्रेयजी की सेवा करनी चाहिये। इस मर्त्यलोकको छोड़ते समय मेरे सामने स्वयं भगवान्‌ने ही आपको उपदेश करने के लिये उन्हें आज्ञा दी थी ॥ २६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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