॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - दूसरा
अध्याय..(पोस्ट०५)
उद्धवजी
द्वारा भगवान् की बाललीलाओं का वर्णन
को
वा अमुष्याङ्घ्रिसरोजरेणुं
विस्मर्तुमीशीत पुमान् विजिघ्रन् ।
यो
विस्फुरद्भ्रूविटपेन भूमेः
भारं कृतान्तेन तिरश्चकार ॥ १८ ॥
दृष्टा
भवद्भिः ननु राजसूये
चैद्यस्य कृष्णं द्विषतोऽपि सिद्धिः ।
यां
योगिनः संस्पृहयन्ति सम्यग्
योगेन कस्तद्विरहं सहेत ॥ १९ ॥
तथैव
चान्ये नरलोकवीरा
य आहवे कृष्णमुखारविन्दम् ।
नेत्रैः
पिबन्तो नयनाभिरामं
पार्थास्त्रपूतः पदमापुरस्य ॥ २० ॥
जिन्होंने
कालरूप अपने भुकुटिविलास से ही पृथ्वी का सारा भार उतार दिया था, उन श्रीकृष्ण के पाद-पद्म-पराग का सेवन करनेवाला ऐसा कौन पुरुष है,
जो उसे भूल सके ॥ १८ ॥ आप लोगों ने राजसूय यज्ञ में प्रत्यक्ष ही
देखा था कि श्रीकृष्ण से द्वेष करनेवाले शिशुपाल को वह सिद्धि मिल गयी, जिसकी बड़े-बड़े योगी भली-भाँति योग-साधना करके स्पृहा करते रहते हैं।
उनका विरह भला कौन सह सकता है ॥ १९ ॥ शिशुपाल के ही समान महाभारत- युद्धमें जिन
दूसरे योद्धाओं ने अपनी आँखों से भगवान् श्रीकृष्ण के नयनाभिराम मुख-कमलका मकरन्द
पान करते हुए,अर्जुन के बाणोंसे बिंधकर प्राणत्याग किया,
वे पवित्र होकर सब-के-सब भगवान् के परमधाम को प्राप्त हो गये ॥ २०
॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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