॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध- आठवाँ
अध्याय..(पोस्ट०३)
राजा
परीक्षित् के विविध प्रश्र
पुरुषावयवैर्लोकाः
सपालाः पूर्वकल्पिताः ।
लोकैरमुष्यावयवाः
सपालैरिति शुश्रुम ॥ ११ ॥
यावान्
कल्पो विकल्पो वा यथा कालोऽनुमीयते ।
भूतभव्यभवच्छब्द
आयुर्मानश्च यत् सतः ॥ १२ ॥
कालस्यानुगतिर्या
तु लक्ष्यतेऽण्वी बृहत्यपि ।
यावत्यः
कर्मगतयो यादृशी द्विजसत्तम ॥ १३ ॥
यस्मिन्
कर्मसमावायो यथा येनोपगृह्यते ।
गुणानां
गुणिनाश्चैव परिणाममभीप्सताम् ॥ १४ ॥
भूपातालककुब्व्योम
ग्रहनक्षत्रभूभृताम् ।
सरित्समुद्रद्वीपानां
सम्भवश्चैतदोकसाम् ॥ १५ ॥
प्रमाणमण्डकोशस्य
बाह्याभ्यन्तरभेदतः ।
महतां
चानुचरितं वर्णाश्रमविनिश्चयः ॥ १६ ॥
(राजा
परीक्षित् कहरहे हैं) पहले आपने बतलाया
था कि विराट् पुरुषके अङ्गोंसे लोक और लोकपालोंकी रचना हुई और फिर यह भी बतलाया कि
लोक और लोकपालोंके रूपमें उसके अङ्गोंकी कल्पना हुई। इन दोनों बातोंका तात्पर्य
क्या है ?
॥ ११ ॥ महाकल्प और उनके अन्तर्गत अवान्तर कल्प कितने हैं ? भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालका अनुमान किस प्रकार
किया जाता है ? क्या स्थूल देहाभिमानी जीवोंकी आयु भी बँधी
हुई है ॥ १२ ॥ ब्राह्मणश्रेष्ठ ! कालकी सूक्ष्म गति त्रुटि आदि और स्थूल गति वर्ष
आदि किस प्रकारसे जानी जाती है ? विविध कर्मोंसे जीवोंकी
कितनी और कैसी गतियाँ होती हैं ॥ १३ ॥ देव, मनुष्य आदि
योनियाँ सत्त्व, रज, तम—इन तीन गुणोंके फलस्वरूप ही प्राप्त होती हैं। उनको चाहनेवाले जीवोंमें से
कौन-कौन किस-किस योनिको प्राप्त करनेके लिये किस-किस प्रकारसे कौन-कौन कर्म
स्वीकार करते हैं ? ॥ १४ ॥ पृथ्वी, पाताल,
दिशा, आकाश, ग्रह,
नक्षत्र, पर्वत, नदी,
समुद्र, द्वीप और उनमें रहनेवाले जीवोंकी
उत्पत्ति कैसे होती है ? ॥ १५ ॥ ब्रह्माण्डका परिमाण भीतर और
बाहर—दोनों प्रकारसे बतलाइये। साथ ही महापुरुषोंके चरित्र,
वर्णाश्रमके भेद और उनके धर्मका निरूपण कीजिये ॥ १६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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