॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध- छठा
अध्याय..(पोस्ट०१)
विराट्स्वरूपकी
विभूतियोंका वर्णन
ब्रह्मोवाच
।
वाचां
वह्नेर्मुखं क्षेत्रं छन्दसां सप्त धातवः ।
हव्यकव्यामृत
अन्नानां जिह्वा सर्व रसस्य च ॥ १ ॥
सर्वा
असूनां च वायोश्च तत् नासे परमायणे ।
अश्विनोः
ओषधीनां च घ्राणो मोद प्रमोदयोः ॥ २ ॥
रूपाणां
तेजसां चक्षुः दिवः सूर्यस्य चाक्षिणी ।
कर्णौ
दिशां च तीर्थानां श्रोत्रं आकाश शब्दयोः ।
तद्गात्रं
वस्तुसाराणां सौभगस्य च भाजनम् ॥ ३ ॥
ब्रह्माजी
कहते हैं—उन्हीं विराट् पुरुष के मुखसे वाणी और उसके अधिष्ठातृदेवता अग्नि उत्पन्न
हुए हैं। सातों छन्द [*] उनकी सात धातुओंसे निकले हैं। मनुष्यों, पितरों और देवताओंके भोजन करनेयोग्य अमृतमय अन्न, सब
प्रकारके रस, रसनेन्द्रिय और उसके अधिष्ठातृदेवता वरुण
विराट् पुरुषकी जिह्वासे उत्पन्न हुए हैं ॥ १ ॥ उनके नासाछिद्रोंसे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान—ये पाँचों प्राण और वायु तथा घ्राणेन्द्रियसे अश्विनीकुमार, समस्त ओषधियाँ एवं साधारण तथा विशेष गन्ध उत्पन्न हुए हैं ॥ २ ॥ उनकी
नेत्रेन्द्रिय रूप और तेजकी तथा नेत्र-गोलक स्वर्ग और सूर्यकी जन्मभूमि हैं। समस्त
दिशाएँ और पवित्र करनेवाले तीर्थ कानोंसे तथा आकाश और शब्द श्रोत्रेन्द्रियसे
निकले हैं। उनका शरीर संसारकी सभी वस्तुओंके सारभाग तथा सौन्दर्यका खजाना है ॥ ३ ॥
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[*]
गायत्री,
त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, उष्णिक्,
बृहती, पङ्क्ति और जगती—ये
सात छन्द हैं।
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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