॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध-सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०४)
परीक्षित्
की दिग्विजय
तथा
धर्म और पृथ्वी का संवाद
अरक्ष्यमाणाः
स्त्रिय उर्वि बालान्
शोचस्यथो
पुरुषादैरिवार्तान् ।
वाचं
देवीं ब्रह्मकुले कुकर्म-
ण्य़ब्रह्मण्ये
राजकुले कुलाग्र्यान् ॥२१॥
किं
क्षत्रबन्धून् कलिनोपसृष्टान्
राष्ट्राणि
वा तैरवरोपितानि ।
इतस्ततो
वाशनपानवास:-
स्नानव्यवायोन्मुखजीवलोकम्
॥२२॥
यद्वाम्ब
ते भूरिभरावतार
कृतावतारस्य
हरेर्धरित्रि ।
अन्तर्हितस्य
स्मरती विसृष्टा
कर्माणि
निर्वाणविलम्बितानि ॥२३॥
इदं
ममाचक्ष्व तवाधिमूलं
वसुन्धरे
येन विकर्शितासि ।
कालेन
वा ते बलिना बलियसा
सुरार्चितं
किं हृतमम्ब सौभगम् ॥२४॥
(बैलरूपी
धर्म गाय के रूपमें पृथ्वी से कहरहे हैं) देवि ! क्या तुम राक्षस-सरीखे मनुष्यों के
द्वारा सतायी हुई अरक्षित स्त्रियों एवं आर्तबालकों के लिये शोक कर रही हो ? सम्भव है, विद्या अब कुकर्मी ब्राह्मणों के चंगुलमें
पड़ गयी है और ब्राह्मण विप्रद्रोही राजाओं की सेवा करने लगे हैं, और इसीका तुम्हें दु:ख हो ॥ २१ ॥ आजके नाममात्रके राजा तो सोलहों आने
कलियुगी हो गये हैं, उन्होंने बड़े-बड़े देशों को भी उजाड़
डाला है। क्या तुम उन राजाओं या देशोंके लिये शोक कर रही हो ? आजकी जनता खान-पान, वस्त्र, स्नान
और स्त्री-सहवास आदिमें शास्त्रीय नियमोंका पालन न करके स्वेच्छाचार कर रही है;
क्या इसके लिये तुम दुखी हो ? ॥ २२ ॥ मा
पृथ्वी ! अब समझमें आया, हो-न-हो तुम्हें भगवान्
श्रीकृष्णकी याद आ रही होगी; क्योंकि उन्होंने तुम्हारा भार
उतारनेके लिये ही अवतार लिया था और ऐसी लीलाएँ की थीं, जो
मोक्षका भी अवलम्बन हैं। अब उनके लीला संवरण कर लेनेपर उनके परित्यागसे तुम दुखी
हो रही हो ॥ २३ ॥ देवि ! तुम तो धन-रत्नोंकी खान हो। तुम अपने क्लेशका कारण,
जिससे तुम इतनी दुर्बल हो गयी हो, मुझे बतलाओ।
मालूम होता है, बड़े-बड़े बलवानोंको भी हरा देनेवाले काल ने
देवताओंके द्वारा वन्दनीय तुम्हारे सौभाग्यको छीन लिया है ॥ २४ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
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