॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध- उन्नीसवाँ
अध्याय..(पोस्ट ०७)
परीक्षित्का
अनशनव्रत और शुकदेवजीका आगमन
स
विष्णुरातोऽतिथय आगताय
तस्मै सपर्यां शिरसाऽऽजहार ।
ततो
निवृत्ता ह्यबुधाः स्त्रियोऽर्भका
महासने सोपविवेश पूजितः ॥ २९ ॥
स
संवृतस्तत्र महान् महीयसां
ब्रह्मर्षिराजर्षिदेवर्षि सङ्घैः ।
व्यरोचतालं
भगवान् यथेन्दुः
ग्रहर्क्षतारानिकरैः परीतः ॥ ३० ॥
प्रशान्तमासीनमकुण्ठमेधसं
मुनिं नृपो भागवतोऽभ्युपेत्य ।
प्रणम्य
मूर्ध्नावहितः कृताञ्जलिः
नत्वा गिरा सूनृतयान्वपृच्छत् ॥ ३१ ॥
राजा
परीक्षित्ने अतिथिरूपसे पधारे हुए श्रीशुकदेवजीको सिर झुकाकर प्रणाम किया और उनकी
पूजा की। उनके स्वरूपको न जाननेवाले बच्चे और स्त्रियाँ उनकी यह महिमा देखकर
वहाँसे लौट गये;
सबके द्वारा सम्मानित होकर श्रीशुकदेवजी श्रेष्ठ आसनपर विराजमान हुए
॥ २९ ॥ ग्रह, नक्षत्र और तारोंसे घिरे हुए चन्द्रमाके समान
ब्रहमर्षि, देवर्षि और राजर्षियोंके समूहसे आवृत
श्रीशुकदेवजी अत्यन्त शोभायमान हुए। वास्तवमें वे महात्माओंके भी आदरणीय थे ॥ ३० ॥
जब प्रखरबुद्धि श्रीशुकदेवजी शान्तभावसे बैठ गये, तब भगवान्के
परम भक्त परीक्षित्ने उनके समीप आकर और चरणोंपर सिर रखकर प्रणाम किया। फिर खड़े
होकर हाथ जोडक़र नमस्कार किया। उसके पश्चात् बड़ी मधुर वाणीसे उनसे यह पूछा ॥ ३१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
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