॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०२)
अपशकुन
देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना
और
अर्जुन का द्वारका से लौटना
पश्योत्पातान्
नरव्याघ्र दिव्यान् भौमान् सदैहिकान् ।
दारुणान्शंसतोऽदूराद्
भयं नो बुद्धिमोहनम् ॥ १० ॥
ऊर्वक्षिबाहवो
मह्यं स्फुरन्त्यङ्ग पुनः पुनः ।
वेपथुश्चापि
हृदये आरात् दास्यन्ति विप्रियम् ॥ ११ ॥
शिवैषोद्यन्तं
आदित्यं अभिरौति अनलानना ।
मामङ्ग
सारमेयोऽयं अभिरेभत्यभीरुवत् ॥ १२ ॥
शस्ताः
कुर्वन्ति मां सव्यं दक्षिणं पशवोऽपरे ।
वाहांश्च
पुरुषव्याघ्र लक्षये रुदतो मम ॥ १३ ॥
मृत्युदूतः
कपोतोऽयं उलूकः कम्पयन् मनः ।
प्रत्युलूकश्च
कुह्वानैः अनिद्रौ शून्यमिच्छतः ॥ १४ ॥
धूम्रा
दिशः परिधयः कम्पते भूः सहाद्रिभिः ।
निर्घातश्च
महांस्तात साकं च स्तनयित्नुभिः ॥ १५ ॥
वायुर्वाति
खरस्पर्शो रजसा विसृजंस्तमः ।
असृग्
वर्षन्ति जलदा बीभत्सं इव सर्वतः ॥ १६ ॥
(युधिष्ठिर
कहते हैं) भीमसेन ! तुम तो मनुष्यों में व्याघ्र के समान बलवान् हो; देखो तो सही—आकाशमें उल्कापातादि, पृथ्वीमें भूकम्पादि और शरीरों में रोगादि कितने भयंकर अपशकुन हो रहे हैं
! इनसे इस बातकी सूचना मिलती है कि शीघ्र ही हमारी बुद्धिको मोहमें डालनेवाला कोई
उत्पात होनेवाला है ॥ १० ॥ प्यारे भीमसेन ! मेरी बायीं जाँघ, आँख और भुजा बार-बार फडक़ रही हैं। हृदय जोरसे धडक़ रहा है। अवश्य ही बहुत
जल्दी कोई अनिष्ट होनेवाला है ॥ ११ ॥ देखो, यह सियारिन उदय
होते हुए सूर्यकी ओर मुँह करके रो रही है। अरे ! उसके मुँहसे तो आग भी निकल रही है
! यह कुत्ता बिलकुल निर्भय-सा होकर मेरी ओर देखकर चिल्ला रहा है ॥ १२ ॥ भीमसेन !
गौ आदि अच्छे पशु मुझे अपने बायें करके जाते हैं और गधे आदि बुरे पशु मुझे अपने
दाहिने कर देते हैं। मेरे घोड़े आदि वाहन मुझे रोते हुए दिखायी देते हैं ॥ १३ ॥ यह
मृत्युका दूत पेडुखी, उल्लू और उसका प्रतिपक्षी कौआ रातको
अपने कर्ण-कठोर शब्दोंसे मेरे मनको कँपाते हुए विश्वको सूना कर देना चाहते हैं ॥
१४ ॥ दिशाएँ धुँधली हो गयी हैं, सूर्य और चन्द्रमाके चारों
ओर बार-बार मण्डल बैठते हैं। यह पृथ्वी पहाड़ोंके साथ काँप उठती है, बादल बड़े जोर-जोरसे गरजते हैं और जहाँ-तहाँ बिजली भी गिरती ही रहती है ॥
१५ ॥ शरीरको छेदनेवाली एवं धूलिवर्षासे अंधकार फैलानेवाली आँधी चलने लगी है। बादल
बड़ा डरावना दृश्य उपस्थित करके सब ओर खून बरसाते हैं ॥ १६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
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