Wednesday, January 31, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध--चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०१)

अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना
और अर्जुन का द्वारका से लौटना

सूत उवाच ।
सम्प्रस्थिते द्वारकायां जिष्णौ बन्धुदिदृक्षया ।
ज्ञातुं च पुण्यश्लोकस्य कृष्णस्य च विचेष्टितम् ॥ १ ॥
व्यतीताः कतिचिन्मासाः तदा नायात् ततोऽर्जुनः ।
ददर्श घोररूपाणि निमित्तानि कुरूद्वहः ॥ २ ॥
कालस्य च गतिं रौद्रां विपर्यस्तर्तुधर्मिणः ।
पापीयसीं नृणां वार्तां क्रोधलोभानृतात्मनाम् ॥ ३ ॥
जिह्मप्रायं व्यवहृतं शाठ्यमिश्रं च सौहृदम् ।
पितृमातृसुहृद्‍भ्रातृ दम्पतीनां च कल्कनम् ॥ ४ ॥
निमित्तान्यत्यरिष्टानि काले तु अनुगते नृणाम् ।
लोभादि अधर्मप्रकृतिं दृष्ट्वोवाचानुजं नृपः ॥ ५ ॥

युधिष्ठिर उवाच ।
सम्प्रेषितो द्वारकायां जिष्णुर्बन्धु दिदृक्षया ।
ज्ञातुं च पुण्यश्लोकस्य कृष्णस्य च विचेष्टितम् ॥ ६ ॥
गताः सप्ताधुना मासा भीमसेन तवानुजः ।
नायाति कस्य वा हेतोः नाहं वेदेदमञ्जसा ॥ ७ ॥
अपि देवर्षिणाऽऽदिष्टः स कालोऽयमुपस्थितः ।
यदाऽऽत्मनोऽङ्‌गमाक्रीडं भगवान् उत्सिसृक्षति ॥ ८ ॥
यस्मान्नः सम्पदो राज्यं दाराः प्राणाः कुलं प्रजाः ।
आसन् सपत्‍नविजयो लोकाश्च यदनुग्रहात् ॥ ९ ॥

सूतजी कहते हैंस्वजनोंसे मिलने और पुण्यश्लोक भगवान्‌ श्रीकृष्ण अब क्या करना चाहते हैंयह जाननेके लिये अर्जुन द्वारका गये हुए थे ॥ १ ॥ कई महीने बीत जानेपर भी अर्जुन वहाँसे लौटकर नहीं आये। धर्मराज युधिष्ठिरको बड़े भयंकर अपशकुन दीखने लगे ॥ २ ॥ उन्होंने देखा, काल की गति बड़ी विकट हो गयी है। जिस समय जो ऋतु होनी चाहिये, उस समय वह नहीं होती और उनकी क्रियाएँ भी उलटी ही होती हैं। लोग बड़े क्रोधी, लोभी और असत्यपरायण हो गये हैं। अपने जीवन-निर्वाहके लिये लोग पापपूर्ण व्यापार करने लगे हैं ॥ ३ ॥ सारा व्यवहार कपटसे भरा हुआ होता है, यहाँतक कि मित्रतामें भी छल मिला रहता है; पिता-माता, सगे सम्बन्धी, भाई और पति-पत्नीमें भी झगड़ा-टंटा रहने लगा है ॥ ४ ॥ कलिकाल के आजाने से लोगोंका स्वभाव ही लोभ, दम्भ आदि अधर्मसे अभिभूत हो गया है और प्रकृतिमें भी अत्यन्त अरिष्टसूचक अपशकुन होने लगे हैं, यह सब देखकर युधिष्ठिरने अपने छोटे भाई भीमसेन से कहा ॥ ५ ॥ युधिष्ठिरने कहाभीमसेन ! अर्जुनको हमने द्वारका इसलिये भेजा था कि वह वहाँ जाकर, पुण्यश्लोक भगवान्‌ श्रीकृष्ण क्या कर रहे हैंइसका पता लगा आये और सम्बन्धियोंसे मिल भी आये ॥ ६ ॥ तबसे सात महीने बीत गये; किन्तु तुम्हारे छोटे भाई अबतक नहीं लौट रहे हैं। मैं ठीक-ठीक यह नहीं समझ पाता हूँ कि उनके न आनेका क्या कारण है ॥ ७ ॥ कहीं देवर्षि नारदके द्वारा बतलाया हुआ वह समय तो नहीं आ पहुँचा है, जिसमें भगवान्‌ श्रीकृष्ण अपने लीला-विग्रहका संवरण करना चाहते हैं ? ॥ ८ ॥ उन्हीं भगवान्‌की कृपासे हमें यह सम्पत्ति, राज्य,स्त्री,प्राण,कुल,संतान,शत्रुओंपर विजय और स्वर्गादि लोकोंका अधिकार प्राप्त हुआ है ॥ ९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से



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