॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--आठवाँ अध्याय..(पोस्ट १४)
गर्भमें
परीक्षित्की रक्षा,
कुन्तीके द्वारा भगवान्की स्तुति और युधिष्ठिरका शोक
आह
राजा धर्मसुतः चिन्तयन् सुहृदां वधम् ।
प्राकृतेनात्मना
विप्राः स्नेहमोहवशं गतः ॥ ४७ ॥
अहो
मे पश्यताज्ञानं हृदि रूढं दुरात्मनः ।
पारक्यस्यैव
देहस्य बह्व्यो मेऽक्षौहिणीर्हताः ॥ ४८ ॥
बालद्विजसुहृन्
मित्र पितृभ्रातृगुरु द्रुहः ।
न
मे स्यात् निरयात् मोक्षो ह्यपि वर्ष अयुत आयुतैः ॥ ४९ ॥
नैनो
राज्ञः प्रजाभर्तुः धर्मयुद्धे वधो द्विषाम् ।
इति
मे न तु बोधाय कल्पते शासनं वचः ॥ ५० ॥
स्त्रीणां
मत् हतबंधूनां द्रोहो योऽसौ इहोत्थितः ।
कर्मभिः
गृहमेधीयैः नाहं कल्पो व्यपोहितुम् ॥ ५१ ॥
यथा
पङ्केन पङ्काम्भः सुरया वा सुराकृतम् ।
भूतहत्यां
तथैवैकां न यज्ञैः मार्ष्टुमर्हति ॥ ५२ ॥
शौनकादि
ऋषियो ! धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिरको अपने स्वजनोंके वधसे बड़ी चिन्ता हुई। वे
अविवेकयुक्त चित्तसे स्नेह और मोहके वशमें होकर कहने लगे—भला, मुझ दुरात्माके हृदयमें बद्धमूल हुए इस
अज्ञानको तो देखो; मैंने सियार-कुत्तोंके आहार इस अनात्मा
शरीरके लिये अनेक अक्षौहिणी [*] सेनाका नाश कर डाला ॥ ४७-४८ ॥ मैंने बालक, ब्राह्मण, सम्बन्धी, मित्र,
चाचा, ताऊ, भाई-बन्धु और
गुरुजनोंसे द्रोह किया है। करोड़ों बरसोंमें भी नरकसे मेरा छुटकारा नहीं हो सकता ॥
४९ ॥ यद्यपि शास्त्रका वचन है कि राजा यदि प्रजाका पालन करनेके लिये धर्मयुद्धमें
शत्रुओंको मारे तो उसे पाप नहीं लगता, फिर भी इससे मुझे
संतोष नहीं होता ॥ ५० ॥ स्त्रियोंके पति और भाई-बन्धुओंको मारनेसे उनका मेरे
द्वारा यहाँ जो अपराध हुआ है, उसका मैं गृहस्थोचित
यज्ञ-यागादिकोंके द्वारा मार्जन करनेमें समर्थ नहीं हूँ ॥ ५१ ॥ जैसे कीचड़से गँदला
जल स्वच्छ नहीं किया जा सकता, मदिरासे मदिराकी अपवित्रता
नहीं मिटायी जा सकती, वैसे ही बहुत-से हिंसाबहुल यज्ञोंके
द्वारा एक भी प्राणीकी हत्याका प्रायश्चित्त नहीं किया जा सकता ॥ ५२ ॥
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[*]
२१८७० रथ,२१८७० हाथी, १०९३५० पैदल, और ६५६१० घुडसवार-इतनी सेना को अक्षौहिणी कहते
हैं—महाभारत
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
प्रथमस्कन्धे
कुन्तीस्तुतिर्युधिष्ठिरानुतापो नाम अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से

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