॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०५)
अपशकुन
देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना
और
अर्जुन का द्वारका से लौटना
कच्चित्तेऽनामयं
तात भ्रष्टतेजा विभासि मे ।
अलब्धमानोऽवज्ञातः
किं वा तात चिरोषितः ॥ ३९ ॥
कच्चित्
नाभिहतोऽभावैः शब्दादिभिरमङ्गलैः ।
न
दत्तमुक्तमर्थिभ्य आशया यत्प्रतिश्रुतम् ॥ ४० ॥
कच्चित्त्वं
ब्राह्मणं बालं गां वृद्धं रोगिणं स्त्रियम् ।
शरणोपसृतं
सत्त्वं नात्याक्षीः शरणप्रदः ॥ ४१ ॥
कच्चित्त्वं
नागमोऽगम्यां गम्यां वासत्कृतां स्त्रियम् ।
पराजितो
वाथ भवान् नोत्तमैर्नासमैः पथि ॥ ४२ ॥
अपि
स्वित्पर्यभुङ्क्थास्त्वं सम्भोज्यान् वृद्धबालकान् ।
जुगुप्सितं
कर्म किञ्चित् कृतवान्न यदक्षमम् ॥ ४३ ॥
कच्चित्प्रेष्ठतमेनाथ
हृदयेनात्मबन्धुना ।
शून्योऽस्मि
रहितो नित्यं मन्यसे तेऽन्यथा न रुक् ॥ ४४ ॥
(युधिष्ठिर
कहते हैं) भाई अर्जुन ! यह भी बताओ कि तुम स्वयं तो कुशलसे हो न ? मुझे तुम श्रीहीन-से दीख रहे हो; वहाँ बहुत दिनोंतक
रहे, कहीं तुम्हारे सम्मानमें तो किसी प्रकारकी कमी नहीं हुई
? किसीने तुम्हारा अपमान तो नहीं कर दिया ? ॥ ३९ ॥ कहीं किसीने दुर्भावपूर्ण अमङ्गल शब्द आदिके द्वारा तुम्हारा चित्त
तो नहीं दुखाया ? अथवा किसी आशासे तुम्हारे पास आये हुए
याचकोंको उनकी माँगी हुई वस्तु अथवा अपनी ओरसे कुछ देनेकी प्रतिज्ञा करके भी तुम
नहीं दे सके ? ॥ ४० ॥ तुम सदा शरणागतोंकी रक्षा करते आये हो;
कहीं किसी भी ब्राह्मण, बालक, गौ, बूढ़े, रोगी, अबला अथवा अन्य किसी प्राणीका, जो तुम्हारी शरणमें
आया हो, तुमने त्याग तो नहीं कर दिया ? ॥ ४१ ॥ कहीं तुमने अगम्या स्त्रीसे समागम तो नहीं किया ? अथवा गमन करनेयोग्य स्त्रीके साथ असत्कारपूर्वक समागम तो नहीं किया ?
कहीं मार्गमें अपनेसे छोटे अथवा बराबरीवालोंसे हार तो नहीं गये ?
॥ ४२ ॥ अथवा भोजन करानेयोग्य बालक और बूढ़ोंको छोडक़र तुमने अकेले ही
तो भोजन नहीं कर लिया ? मेरा विश्वास है कि तुमने ऐसा कोई
निन्दित काम तो नहीं किया होगा, जो तुम्हारे योग्य न हो ॥ ४३
॥ हो-न-हो अपने परम प्रियतम अभिन्नहृदय परम सुहृद् भगवान् श्रीकृष्णसे तुम रहित
हो गये हो। इसीसे अपनेको शून्य मान रहे हो । इसके सिवा दूसरा कोई कारण नहीं हो
सकता, जिससे तुमको इतनी मानसिक पीड़ा हो’ ॥ ४४ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
प्रथमस्कन्धे
युधिष्टिरवितर्को नाम चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से