Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य तीसरा अध्याय (पोस्ट.०३)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
तीसरा अध्याय (पोस्ट.०३)

भक्तिके कष्टकी निवृत्ति

वैष्णवाश्च विरक्ताश्च न्यासिनो ब्रह्मचारिणः ।
मुखभागे स्थितास्ते च तदग्रे नारदः स्थितः ॥ १९ ॥
एकभागे ऋषिगणाः तद् अन्यत्र दिवौकसः ।
वेदोपनिषदो अन्यत्र तीर्थान् यत्र स्त्रियोऽन्यतः ॥ २० ॥
जयशब्दो नमःशब्दोः शंखशब्दस्तथैव च ।
चूर्णलाजा प्रसूनानां निक्षेपः सुमहान् अभूत् ॥ २१ ॥
विमानानि समारुह्य कियन्तो देवनायकाः ।
कल्पवृक्ष प्रसूनैस्तान् सर्वान् तत्र समाकिरन् ॥ २२ ॥

सूत उवाच –

एवं तेष्वकचित्तेषु श्रीमद्‌भागवस्य च ।
माहात्म्यं ऊचिरे स्पष्टं नारदाय महात्मने ॥ २३ ॥

कुमारा ऊचुः –

अथ ते वर्ण्यतेऽस्माभिः महिमा शुकशास्त्रजः ।
यस्य श्रवणमात्रेण मुक्तिः करतले स्थिता ॥ २४ ॥
सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्‌भागवती कथा ।
यस्याः श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ॥ २५ ॥
ग्रन्थोऽष्टादशसाहस्त्रो द्वादशस्कन्धसम्मितः ।
परीक्षित् शुकसंवादः श्रृणु भागवतं च तत् ॥ २६ ॥

(भागवत कथा के) श्रोताओं में वैष्णव, विरक्त, संन्यासी और ब्रह्मचारी लोग आगे बैठे और उन सबके आगे नारदजी विराजमान हुए ॥ १९ ॥ एक ओर ऋषिगण, एक ओर देवता, एक ओर वेद और उपनिषदादि तथा एक ओर तीर्थ बैठे, और दूसरी ओर स्त्रियाँ बैठीं ॥ २० ॥ उस समय सब ओर जय-जयकार, नमस्कार और शङ्खों का शब्द होने लगा और अबीर-गुलाल, खील एवं फूलोंकी खूब वर्षा होने लगी ॥ २१ ॥ कोई-कोई देवश्रेष्ठ तो विमानोंपर चढक़र, वहाँ बैठे हुए सब लोगोंपर कल्पवृक्षके पुष्पोंकी वर्षा करने लगे ॥ २२ ॥
सूतजी कहते हैंइस प्रकार पूजा समाप्त होनेपर जब सब लोग एकाग्रचित्त हो गये, तब सनकादि ऋषि महात्मा नारदको श्रीमद्भागवतका माहात्म्य स्पष्ट करके सुनाने लगे ॥ २३ ॥
सनकादिने कहाअब हम आपको इस भागवतशास्त्रकी महिमा सुनाते हैं। इसके श्रवणमात्रसे मुक्ति हाथ लग जाती है ॥ २४ ॥ श्रीमद्भागवतकी कथाका सदा-सर्वदा सेवन, आस्वादन करना चाहिये। इसके श्रवणमात्रसे श्रीहरि हृदयमें आ विराजते हैं ॥ २५ ॥ इस ग्रन्थमें अठारह हजार श्लोक और बारह स्कन्ध हैं तथा श्रीशुकदेव और राजा परीक्षित्‌का संवाद है। आप यह भागवत- शास्त्र ध्यान देकर सुनिये ॥ २६ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड 1535 से 


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