||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
तीसरा
अध्याय (पोस्ट.०३)
भक्तिके
कष्टकी निवृत्ति
वैष्णवाश्च
विरक्ताश्च न्यासिनो ब्रह्मचारिणः ।
मुखभागे
स्थितास्ते च तदग्रे नारदः स्थितः ॥ १९ ॥
एकभागे
ऋषिगणाः तद् अन्यत्र दिवौकसः ।
वेदोपनिषदो
अन्यत्र तीर्थान् यत्र स्त्रियोऽन्यतः ॥ २० ॥
जयशब्दो
नमःशब्दोः शंखशब्दस्तथैव च ।
चूर्णलाजा
प्रसूनानां निक्षेपः सुमहान् अभूत् ॥ २१ ॥
विमानानि
समारुह्य कियन्तो देवनायकाः ।
कल्पवृक्ष
प्रसूनैस्तान् सर्वान् तत्र समाकिरन् ॥ २२ ॥
सूत
उवाच –
एवं
तेष्वकचित्तेषु श्रीमद्भागवस्य च ।
माहात्म्यं
ऊचिरे स्पष्टं नारदाय महात्मने ॥ २३ ॥
कुमारा
ऊचुः –
अथ
ते वर्ण्यतेऽस्माभिः महिमा शुकशास्त्रजः ।
यस्य
श्रवणमात्रेण मुक्तिः करतले स्थिता ॥ २४ ॥
सदा
सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा ।
यस्याः
श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ॥ २५ ॥
ग्रन्थोऽष्टादशसाहस्त्रो
द्वादशस्कन्धसम्मितः ।
परीक्षित्
शुकसंवादः श्रृणु भागवतं च तत् ॥ २६ ॥
(भागवत
कथा के) श्रोताओं में वैष्णव, विरक्त, संन्यासी
और ब्रह्मचारी लोग आगे बैठे और उन सबके आगे नारदजी विराजमान हुए ॥ १९ ॥ एक ओर
ऋषिगण, एक ओर देवता, एक ओर वेद और
उपनिषदादि तथा एक ओर तीर्थ बैठे, और दूसरी ओर स्त्रियाँ
बैठीं ॥ २० ॥ उस समय सब ओर जय-जयकार, नमस्कार और शङ्खों का
शब्द होने लगा और अबीर-गुलाल, खील एवं फूलोंकी खूब वर्षा
होने लगी ॥ २१ ॥ कोई-कोई देवश्रेष्ठ तो विमानोंपर चढक़र, वहाँ
बैठे हुए सब लोगोंपर कल्पवृक्षके पुष्पोंकी वर्षा करने लगे ॥ २२ ॥
सूतजी
कहते हैं—इस प्रकार पूजा समाप्त होनेपर जब सब लोग एकाग्रचित्त हो गये, तब सनकादि ऋषि महात्मा नारदको श्रीमद्भागवतका माहात्म्य स्पष्ट करके
सुनाने लगे ॥ २३ ॥
सनकादिने
कहा—अब हम आपको इस भागवतशास्त्रकी महिमा सुनाते हैं। इसके श्रवणमात्रसे मुक्ति
हाथ लग जाती है ॥ २४ ॥ श्रीमद्भागवतकी कथाका सदा-सर्वदा सेवन, आस्वादन करना चाहिये। इसके श्रवणमात्रसे श्रीहरि हृदयमें आ विराजते हैं ॥
२५ ॥ इस ग्रन्थमें अठारह हजार श्लोक और बारह स्कन्ध हैं तथा श्रीशुकदेव और राजा
परीक्षित्का संवाद है। आप यह भागवत- शास्त्र ध्यान देकर सुनिये ॥ २६ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड
1535 से

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