Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य तीसरा अध्याय (पोस्ट.०१)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
तीसरा अध्याय (पोस्ट.०१)

भक्तिके कष्टकी निवृत्ति

नारद उवाच –

ज्ञानयज्ञं करिष्यामि शुकशास्त्रकथोज्ज्वलम् ।
भक्तिर्ज्ञानविरागाणां स्थापनार्थं प्रयत्‍नतः ॥ १ ॥
कुत्र कार्यो मया यज्ञः स्थलं तद्‌वाच्यतामिह ।
महिमा शुकशास्त्रस्य वक्तव्यो वेदपारगैः ॥ २ ॥
कियद्‌भिः दिवसैः श्राव्या श्रीमद्‌भागवती कथा ।
को विधिः तत्र कर्तव्यो ममेदं ब्रुवतामितः ॥ ३ ॥

कुमारा ऊचुः –

श्रृणु नारद वक्ष्यामो विनम्राय विवेकिने ।
गंगाद्वारसमीपे तु तटं आनन्दनामकम् ॥ ४ ॥
नानाऋषिगणैर्जुष्टं देवसिद्धनिषेवनम् ।
नानातरुलताकीर्णं नवकोमलवालुकम् ॥ ५ ॥
रम्यं एकान्तदेशस्थं हेमपद्मसुसौरभम् ।
यत्समीपस्थजीवानां वैरं चेतसि न स्थितम् ॥ ६ ॥
ज्ञानयज्ञस्त्वया तत्र कर्तव्यो हि अप्रयत्‍नतः ।
अपूर्वरसरूपा च कथा तत्र भविष्यति ॥ ७ ॥
पुरःस्थं निर्बलं चैव जराजीर्णकलेवरम् ।
तद्‌द्वयं च पुरस्कृत्य भक्तिस्तत्रागमिष्यति ॥ ८ ॥
यत्र भागवती वार्ता तत्र भक्त्यादिकं व्रजेत् ।
कथाशब्दं समाकर्ण्य तत्त्रिकं तरुणायते ॥ ९ ॥

नारदजी कहते हैंअब मैं भक्ति, ज्ञान और वैराग्यको स्थापित करनेके लिये प्रयत्नपूर्वक श्रीशुकदेवजीके कहे हुए भागवतशास्त्रकी कथा द्वारा उज्ज्वल ज्ञानयज्ञ करूँगा ॥ १ ॥ यह यज्ञ मुझे कहाँ करना चाहिये, आप इसके लिये कोई स्थान बता दीजिये। आपलोग वेद के पारगामी हैं, इसलिये मुझे इस शुकशास्त्र की महिमा सुनाइये ॥ २ ॥ यह भी बताइये कि श्रीमद्भागवत की कथा कितने दिनों में सुनानी चाहिये और उसके सुनने की विधि क्या है ॥ ३ ॥
सनकादि बोलेनारदजी ! आप बड़े विनीत और विवेकी हैं। सुनिये, हम आपको ये सब बातें बताते हैं। हरिद्वार के पास आनन्द नामका एक घाट है ॥ ४ ॥ वहाँ अनेकों ऋषि रहते हैं तथा देवता और सिद्धलोग भी उसका सेवन करते रहते हैं। भाँति-भाँतिके वृक्ष और लताओं के कारण वह बड़ा सघन है और वहाँ बड़ी कोमल नवीन बालू बिछी हुई है ॥ ५ ॥ वह घाट बड़ा ही सुरम्य और एकान्त प्रदेश में है, वहाँ हर समय सुनहले कमलों की सुगन्ध आया करती है। उसके आस-पास रहनेवाले सिंह, हाथी आदि परस्पर-विरोधी जीवोंके चित्तोंमें भी वैरभाव नहीं है ॥ ६ ॥ वहाँ आप बिना किसी विशेष प्रयत्नके ही ज्ञानयज्ञ आरम्भ कर दीजिये, उस स्थानपर कथामें अपूर्व रसका उदय होगा ॥ ७ ॥ भक्ति भी अपनी आँखोंके ही सामने निर्बल और जराजीर्ण अवस्थामें पड़े हुए ज्ञान और वैराग्यको साथ लेकर वहाँ आ जायगी ॥ ८ ॥ क्योंकि जहाँ भी श्रीमद्भागवतकी कथा होती है, वहाँ ये भक्ति आदि अपने-आप पहुँच जाते हैं। वहाँ कानों में कथा के शब्द पडऩे से ये तीनों तरुण हो जायँगे ॥ ९ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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