॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - चौदहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०६)
दिति
का गर्भधारण
दितिरुवाच
।
न
मे गर्भमिमं ब्रह्मन् भूतानां ऋषभोऽवधीत् ।
रुद्रः
पतिर्हि भूतानां यस्याकरवमंहसम् ॥ ३३ ॥
नमो
रुद्राय महते देवायोग्राय मीढुषे ।
शिवाय
न्यस्तदण्डाय धृतदण्डाय मन्यवे ॥ ३४ ॥
स
नः प्रसीदतां भामो भगवानुर्वनुग्रहः ।
व्याधस्याप्यनुकम्प्यानां
स्त्रीणां देवः सतीपतिः ॥ ३५ ॥
मैत्रेय
उवाच ।
स्वसर्गस्याशिषं
लोक्यां आशासानां प्रवेपतीम् ।
निवृत्तसन्ध्यानियमो
भार्यामाह प्रजापतिः ॥ ३६ ॥
दिति
बोलीं—ब्रह्मन् ! भगवान् रुद्र भूतोंके स्वामी हैं, मैंने
उनका अपराध किया है; किन्तु वे भूतश्रेष्ठ मेरे इस गर्भ को
नष्ट न करें ॥ ३३ ॥ मैं भक्तवाञ्छाकल्पतरु, उग्र एवं
रुद्ररूप महादेव को नमस्कार करती हूँ। वे सत्पुरुषोंके लिये कल्याणकारी एवं दण्ड
देनेके भावसे रहित हैं, किन्तु दुष्टोंके लिये क्रोधमूर्ति
दण्डपाणि हैं ॥ ३४ ॥ हम स्त्रियोंपर तो व्याध भी दया करते हैं, फिर वे सतीपति तो मेरे बहनोई और परम कृपालु हैं; अत:
वे मुझपर प्रसन्न हों ॥ ३५ ॥
श्रीमैत्रेयजीने
कहा—विदुरजी ! प्रजापति कश्यपने सायंकालीन सन्ध्या-वन्दनादि कर्मसे निवृत्त
होनेपर देखा कि दिति थर-थर काँपती हुई अपनी सन्तानकी लौकिक और पारलौकिक उन्नतिके
लिये प्रार्थना कर रही है। तब उन्होंने उससे कहा ॥ ३६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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