॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - बारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०६)
सृष्टिका
विस्तार
कदाचिद्
ध्यायतः स्रष्टुः वेदा आसंश्चतुर्मुखात् ।
कथं
स्रक्ष्याम्यहं लोकाम् समवेतान् यथा पुरा ॥ ३४ ॥
चातुर्होत्रं
कर्मतन्त्रं उपवेदनयैः सह ।
धर्मस्य
पादाश्चत्वारः तथैवाश्रमवृत्तयः ॥ ३५ ॥
विदुर
उवाच ।
स
वै विश्वसृजामीशो वेदादीन् मुखतोऽसृजत् ।
यद्
यद् येनासृजद् देवस्तन्मे ब्रूहि तपोधन ॥ ३६ ॥
मैत्रेय
उवाच ।
ऋग्यजुःसामाथर्वाख्यान्
वेदान् पूर्वादिभिर्मुखैः ।
शास्त्रमिज्यां
स्तुतिस्तोमं प्रायश्चित्तं व्यधात्क्रमात् ॥ ३७ ॥
आयुर्वेदं
धनुर्वेदं गान्धर्वं वेदमात्मनः ।
स्थापत्यं
चासृजद् वेदं क्रमात् पूर्वादिभिर्मुखैः ॥ ३८ ॥
इतिहासपुराणानि
पञ्चमं वेदमीश्वरः ।
सर्वेभ्य
एव वक्त्रेभ्यः ससृजे सर्वदर्शनः ॥ ३९ ॥
षोडश्युक्थौ
पूर्ववक्त्रात् पुरीष्यग्निष्टुतावथ ।
आप्तोर्यामातिरात्रौ
च वाजपेयं सगोसवम् ॥ ४० ॥
एक
बार ब्रह्माजी यह सोच रहे थे कि ‘मैं पहले की तरह सुव्यवस्थित
रूपसे सब लोकों की रचना किस प्रकार करूँ ?’ इसी समय उनके चार
मुखों से चार वेद प्रकट हुए ॥ ३४ ॥ इनके सिवा उपवेद, न्यायशास्त्र,
होता, उद्गाता, अध्वर्यु
और ब्रह्मा—इन चार ऋत्विजों के कर्म, यज्ञों
का विस्तार, धर्मके चार चरण और चारों आश्रम तथा उनकी
वृत्तियाँ—ये सब भी ब्रह्माजी के मुखों से ही उत्पन्न हुए ॥
३५ ॥
विदुरजीने
पूछा—तपोधन ! विश्वरचयिताओं के स्वामी श्रीब्रह्माजी ने जब अपने मुखों से इन
वेदादि को रचा, तो उन्होंने अपने किस मुख से कौन वस्तु
उत्पन्न की—यह आप कृपा करके मुझे बतलाइये ॥ ३६ ॥
श्रीमैत्रेयजीने
कहा—विदुरजी ! ब्रह्माने अपने पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तरके मुखसे क्रमश: ऋक्, यजु:, साम और अथर्ववेदोंको रचा तथा इसी क्रमसे शस्त्र (होताका कर्म), इज्या (अध्वर्युका कर्म), स्तुतिस्तोम (उद्गाताका
कर्म) और प्रायश्चित्त (ब्रह्माका कर्म)—इन चारोंकी रचना की
॥ ३७ ॥ इसी प्रकार आयुर्वेद (चिकित्साशास्त्र), धनुर्वेद
(शस्त्रविद्या), गान्धर्ववेद (सङ्गीतशास्त्र) और स्थापत्यवेद
(शिल्पविद्या)—इन चार उपवेदों को भी क्रमश: उन पूर्वादि
मुखों से ही उत्पन्न किया ॥ ३८ ॥ फिर सर्वदर्शी भगवान् ब्रह्मा ने अपने चारों
मुखों से इतिहास-पुराणरूप पाँचवाँ वेद बनाया ॥ ३९ ॥ इसी क्रम से षोडशी और उप्य,
चयन और अग्रिष्टोम, आप्तोर्याम और अतिरात्र
तथा वाजपेय और गोसव—ये दो-दो याग भी उनके पूर्वादि मुखों से
ही उत्पन्न हुए॥४०॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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