॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - ग्यारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०९)
मन्वन्तरादि
कालविभाग का वर्णन
यदर्धमायुषस्तस्य
परार्धमभिधीयते ।
पूर्वः
परार्धोऽपक्रान्तो ह्यपरोऽद्य प्रवर्तते ॥ ३३ ॥
पूर्वस्यादौ
परार्धस्य ब्राह्मो नाम महानभूत् ।
कल्पो
यत्राभवद्ब्रह्मा शब्दब्रह्मेति यं विदुः ॥ ३४ ॥
तस्यैव
चान्ते कल्पोऽभूद् यं पाद्ममभिचक्षते ।
यद्धरेर्नाभिसरस
आसीत् लोकसरोरुहम् ॥ ३५ ॥
ब्रह्माजीकी
आयु के आधे भाग को परार्ध कहते हैं। अबतक पहला परार्ध तो बीत चुका है, दूसरा चल रहा है ॥ ३३ ॥ पूर्व परार्ध के आरम्भ में ब्राह्म नामक महान्
कल्प हुआ था। उसी में ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई थी। पण्डितजन इन्हें शब्दब्रह्म
कहते हैं ॥ ३४ ॥ उसी परार्धके अन्तमें जो कल्प हुआ था, उसे
पाद्मकल्प कहते हैं। इसमें भगवान् के नाभिसरोवरसे सर्वलोकमय कमल प्रकट हुआ था ॥
३५ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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