Tuesday, August 28, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

मन्वन्तरादि कालविभाग का वर्णन

अणुर्द्वौ परमाणू स्यात् त्रसरेणुस्त्रयः स्मृतः ।
जालार्करश्म्यवगतः खमेवानुपतन्नगात् ॥ ५ ॥
त्रसरेणुत्रिकं भुङ्क्ते यः कालः स त्रुटिः स्मृतः ।
शतभागस्तु वेधः स्यात् तैस्त्रिभिस्तु लवः स्मृतः ॥ ६ ॥
निमेषस्त्रिलवो ज्ञेय आम्नातस्ते त्रयः क्षणः ।
क्षणान् पञ्च विदुः काष्ठां लघु ता दश पञ्च च ॥ ७ ॥
लघूनि वै समाम्नाता दश पञ्च च नाडिका ।
ते द्वे मुहूर्तः प्रहरः षड्यामः सप्त वा नृणाम् ॥ ८ ॥

दो परमाणु मिलकर एक अणुहोता है और तीन अणुओंके मिलनेसे एक त्रसरेणुहोता है, जो झरोखेमेंसे होकर आयी हुई सूर्यकी किरणोंके प्रकाशमें आकाशमें उड़ता देखा जाता है ॥ ५ ॥ ऐसे तीन त्रसरेणुओंको पार करनेमें सूर्यको जितना समय लगता है, उसे त्रुटिकहते हैं। इससे सौगुना काल वेधकहलाता है और तीन वेधका एक लवहोता है ॥ ६ ॥ तीन लवको एक निमेषऔर तीन निमेषको एक क्षणकहते हैं। पाँच क्षणकी एक काष्ठाहोती है और पंद्रह काष्ठाका एक लघु॥ ७ ॥ पंद्रह लघुकी एक नाडिका’ (दण्ड) कही जाती है, दो नाडिकाका एक मुहूत्र्तहोता है और दिनके घटने-बढऩेके अनुसार (दिन एवं रात्रिकी दोनों सन्धियोंके दो मुहूत्र्तोंको छोडक़र) छ: या सात नाडिकाका एक प्रहरहोता है। यह यामकहलाता है, जो मनुष्यके दिन या रातका चौथा भाग होता है ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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