॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - ग्यारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०७)
मन्वन्तरादि
कालविभाग का वर्णन
स्वं
स्वं कालं मनुर्भुङ्क्ते साधिकां ह्येकसप्ततिम् ।
मन्वन्तरेषु
मनवः तद् वंश्या ऋषयः सुराः ।
भवन्ति
चैव युगपत् सुरेशाश्चानु ये च तान् ॥ २४ ॥
एष
दैनन्दिनः सर्गो ब्राह्मस्त्रैलोक्यवर्तनः ।
तिर्यङ्नृपितृदेवानां
सम्भवो यत्र कर्मभिः ॥ २५ ॥
मन्वन्तरेषु
भगवान् बिभ्रत्सत्त्वं स्वमूर्तिभिः ।
मन्वादिभिरिदं
विश्वं अवत्युदितपौरुषः ॥ २६ ॥
प्रत्येक
मनु इकहत्तर चतुर्युगी से कुछ अधिक काल (७१ चतुर्युगी) तक अपना अधिकार भोगता है।
प्रत्येक मन्वन्तर में भिन्न-भिन्न मनुवंशी राजालोग, सप्तर्षि,
देवगण, इन्द्र और उनके अनुयायी गन्धर्वादि
साथ-साथ ही अपना अधिकार भोगते हैं ॥ २४ ॥ यह ब्रह्मा जी की प्रतिदिन की सृष्टि है,
जिसमें तीनों लोकों की रचना होती है। उसमें अपने-अपने कर्मानुसार
पशु-पक्षी, मनुष्य, पितर और देवताओं की
उत्पत्ति होती है ॥ २५ ॥ इन मन्वन्तरों में भगवान् सत्त्वगुण का आश्रय ले,
अपनी मनु आदि मूर्तियों के द्वारा पौरुष प्रकट करते हुए इस विश्व का
पालन करते हैं ॥२६॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
No comments:
Post a Comment