Sunday, July 29, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

ब्रह्माजीकी उत्पत्ति

क एष योऽसौ अहमब्जपृष्ठ
     एतत्कुतो वाब्जमनन्यदप्सु ।
अस्ति ह्यधस्तादिह किञ्चनैतद्
     अधिष्ठितं यत्र सता नु भाव्यम् ॥ १८ ॥
स इत्थमुद्वीक्ष्य तदब्जनाल
     नाडीभिरन्तर्जलमाविवेश ।
नार्वाग्गतस्तत् खरनालनाल
     नाभिं विचिन्वन् तदविन्दताजः ॥ १९ ॥
तमस्यपारे विदुरात्मसर्गं
     विचिन्वतोऽभूत् सुमहांस्त्रिणेमिः ।
यो देहभाजां भयमीरयाणः
     परिक्षिणोत्यायुरजस्य हेतिः ॥ २० ॥
ततो निवृत्तोऽप्रतिलब्धकामः
     स्वधिष्ण्यमासाद्य पुनः स देवः ।
शनैर्जितश्वासनिवृत्तचित्तो
     न्यषीददारूढसमाधियोगः ॥ २१ ॥

वे (आदिदेव ब्रह्माजी) सोचने लगे, ‘इस कमलकी कर्णिका पर बैठा हुआ मैं कौन हूँ ? यह कमल भी बिना किसी अन्य आधार के जल में कहाँ से उत्पन्न हो गया ? इसके नीचे अवश्य कोई ऐसी वस्तु होनी चाहिये, जिसके आधारपर यह स्थित है॥ १८ ॥ ऐसा सोचकर वे उस कमलकी नालके सूक्ष्म छिद्रोंमें होकर उस जलमें घुसे। किन्तु उस नालके आधारको खोजते-खोजते नाभिदेशके समीप पहुँच जानेपर भी वे उसे पा न सके ॥ १९ ॥ विदुरजी ! उस अपार अन्धकारमें अपने उत्पत्ति-स्थानको खोजते-खोजते ब्रह्माजीको बहुत काल बीत गया। यह काल ही भगवान्‌ का चक्र है, जो प्राणियोंको भयभीत (करता हुआ उनकी आयुको क्षीण) करता रहता है ॥ २० ॥ अन्त में विफलमनोरथ हो वे वहाँसे लौट आये और पुन: अपने आधारभूत कमलपर बैठकर धीरे-धीरे प्राणवायुको जीतकर चित्तको नि:सङ्कल्प किया और समाधिमें स्थित हो गये ॥ २१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...