॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०९)
उद्धव
और विदुर की भेंट
कच्चिद्
हरेः सौम्य सुतः सदृक्ष
आस्तेऽग्रणी रथिनां साधु साम्बः ।
असूत
यं जाम्बवती व्रताढ्या
देवं गुहं योऽम्बिकया धृतोऽग्रे ॥ ३० ॥
क्षेमं
स कच्चिद् युयुधान आस्ते
यः फाल्गुनात् लब्धधनूरहस्यः ।
लेभेऽञ्जसाधोक्षजसेवयैव
गतिं तदीयां यतिभिर्दुरापाम् ॥ ३१ ॥
कच्चिद्
बुधः स्वस्त्यनमीव
आस्ते श्वफल्कपुत्रो भगवत्प्रपन्नः ।
यः
कृष्णपादाङ्कितमार्गपांसु-
ष्वचेष्टत प्रेमविभिन्नधैर्यः ॥ ३२ ॥
(विदुरजी
उद्धवजी से पूछ रहे हैं) सौम्य ! अपने पिता श्रीकृष्ण के समान समस्त रथियों में
अग्रगण्य श्रीकृष्णतनय साम्ब सकुशल तो हैं ? ये पहले पार्वती जी
के द्वारा गर्भमें धारण किये हुए स्वामिकार्तिक हैं । अनेकों व्रत करके जाम्बवती ने
इन्हें जन्म दिया था ॥ ३० ॥ जिन्होंने अर्जुन से रहस्ययुक्त धनुर्विद्या की शिक्षा
पायी है, वे सात्यकि तो कुशलपूर्वक हैं ? वे भगवान् श्रीकृष्ण की सेवा से अनायास ही भगवज्जनों की उस महान् स्थिति पर
पहुँच गये हैं, जो बड़े-बड़े योगियों को भी दुर्लभ है ॥ ३१ ॥
भगवान्के शरणागत निर्मल भक्त बुद्धिमान् अक्रूरजी भी प्रसन्न हैं न, जो श्रीकृष्णके चरण-चिह्नोंसे अङ्कित व्रजके मार्गकी रजमें प्रेमसे अधीर
होकर लोटने लगे थे ? ॥ ३२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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