॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध- छठा
अध्याय..(पोस्ट१०)
विराट्स्वरूपकी
विभूतियोंका वर्णन
आद्योऽवतारः
पुरुषः परस्य
कालः स्वभावः सद्-असन्मनश्च ।
द्रव्यं
विकारो गुण इन्द्रियाणि
विराट् स्वराट् स्थास्नु चरिष्णु भूम्नः ॥ ४१
॥
अहं
भवो यज्ञ इमे प्रजेशा
दक्षादयो ये भवदादयश्च ।
स्वर्लोकपालाः
खगलोकपाला
नृलोकपालाः तललोकपालाः ॥ ४२ ॥
गन्धर्वविद्याधरचारणेशा
ये यक्षरक्षोरग नागनाथाः ।
ये
वा ऋषीणां ऋषभाः पितॄणां
दैत्येन्द्रसिद्धेश्वरदानवेंद्राः ॥ ४३ ॥
अन्ये
च ये प्रेतपिशाचभूत
कूष्माण्ड यादः मृगपक्षि-अधीशाः ।
यत्किञ्च
लोके भगवन् महस्वत्
ओजः सहस्वद् बलवत् क्षमावत् ।
श्रीह्रीविभूत्यात्मवद्
अद्भुतार्णं
तत्त्वं परं रूपवद् अस्वरूपम् ॥ ४४ ॥
प्राधान्यतो
या नृष आमनन्ति
लीलावतारान् पुरुषस्य भूम्नः ।
आपीयतां
कर्णकषायशोषान्
अनुक्रमिष्ये त इमान् सुपेशान् ॥ ४५ ॥
(ब्रह्माजी
कहरहे हैं) परमात्माका पहला अवतार विराट् पुरुष है; उसके सिवा काल, स्वभाव, कार्य,
कारण, मन, पञ्चभूत,
अहंकार, तीनों गुण, इन्द्रियाँ,
ब्रह्माण्ड-शरीर, उसका अभिमानी, स्थावर और जङ्गम जीव—सब-के-सब उन अनन्त भगवान्के ही
रूप हैं ॥ ४१ ॥ मैं, शङ्कर, विष्णु,
दक्ष आदि ये प्रजापति, तुम और तुम्हारे-जैसे
अन्य भक्तजन, स्वर्गलोकके रक्षक, पक्षियोंके
राजा, मनुष्यलोकके राजा, नीचेके
लोकोंके राजा; गन्धर्व, विद्याधर और
चारणोंके अधिनायक; यक्ष, राक्षस,
साँप और नागोंके स्वामी; महर्षि, पितृपति, दैत्येन्द्र, सिद्धेश्वर,
दानवराज; और भी प्रेत-पिशाच, भूत-कूष्माण्ड, जल-जन्तु, मृग
और पक्षियोंके स्वामी; एवं संसारमें और भी जितनी वस्तुएँ
ऐश्वर्य, तेज, इन्द्रियबल, मनोबल, शरीरबल या क्षमासे युक्त हैं; अथवा जो भी विशेष सौन्दर्य, लज्जा, वैभव तथा विभूतिसे युक्त हैं; एवं जितनी भी वस्तुएँ
अद्भुत वर्णवाली, रूपवान् या अरूप हैं—वे
सब-के-सब परमतत्त्वमय भगवत्स्वरूप ही हैं ॥ ४२—४४ ॥ नारद !
इनके सिवा परम पुरुष परमात्माके परम पवित्र एवं प्रधान-प्रधान लीलावतार भी
शास्त्रोंमें वर्णित हैं। उनका मैं क्रमश: वर्णन करता हूँ। उनके चरित्र सुननेमें
बड़े मधुर एवं श्रवणेन्द्रियके दोषोंको दूर करनेवाले हैं। तुम सावधान होकर उनका रस
लो ॥ ४५ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
द्वितीयस्कंधे
षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
No comments:
Post a Comment