Sunday, March 25, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-चौथा अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-चौथा अध्याय..(पोस्ट०२)

राजाका सृष्टिविषयक प्रश्र और शुकदेवजीका कथारम्भ

राजोवाच ॥

समीचीनं वचो ब्रह्मन् सर्वज्ञस्य तवानघ ।
तमो विशीर्यते मह्यं हरेः कथयतः कथाम् ॥ ५ ॥
भूय एव विवित्सामि भगवान् आत्ममायया ।
यथेदं सृजते विश्वं दुर्विभाव्यमधीश्वरैः ॥ ६ ॥
यथा गोपायति विभुः यथा संयच्छते पुनः ।
यां यां शक्तिमुपाश्रित्य पुरुशक्तिः परः पुमान् ।
आत्मानं क्रीडयन्क्रीडन् करोति विकरोति च ॥ ७ ॥
नूनं भगवतो ब्रह्मन् हरेरद्‍भुतकर्मणः ।
दुर्विभाव्यमिवाभाति कविभिश्चापि चेष्टितम् ॥ ८ ॥
यथा गुणांस्तु प्रकृतेः युगपत् क्रमशोऽपि वा ।
बिभर्ति भूरिशस्त्वेकः कुर्वन् कर्माणि जन्मभिः ॥ ९ ॥
विचिकित्सितमेतन्मे ब्रवीतु भगवान् यथा ।
शाब्दे ब्रह्मणि निष्णातः परस्मिंश्च भवान्खलु ॥ १० ॥

परीक्षित्‌ने पूछाभगवत्स्वरूप मुनिवर ! आप परम पवित्र और सर्वज्ञ हैं। आपने जो कुछ कहा है, वह सत्य एवं उचित है। आप ज्यों-ज्यों भगवान्‌की कथा कहते जा रहे हैं, त्यों-त्यों मेरे अज्ञानका परदा फटता जा रहा है ॥ ५ ॥ मैं आपसे फिर भी यह जानना चाहता हूँ कि भगवान्‌ अपनी मायासे इस संसारकी सृष्टि कैसे करते हैं। इस संसारकी रचना तो इतनी रहस्यमयी है कि ब्रह्मादि समर्थ लोकपाल भी इसके समझनेमें भूल कर बैठते हैं ॥ ६ ॥ भगवान्‌ कैसे इस विश्वकी रक्षा और फिर संहार करते हैं ? अनन्तशक्ति परमात्मा किन-किन शक्तियोंका आश्रय लेकर अपने-आपको ही खिलौने बनाकर खेलते हैं ? वे बच्चों के बनाये हुए घरौंदों की तरह ब्रह्माण्डों को कैसे बनाते हैं और फिर किस प्रकार बात-की-बात में मिटा देते हैं ? ॥ ७ ॥ भगवान्‌ श्रीहरि की लीलाएँ बड़ी ही अद्भुतअचिन्त्य हैं। इसमें संदेह नहीं कि बड़े-बड़े विद्वानों के लिये भी उनकी लीला का रहस्य समझना अत्यन्त कठिन प्रतीत होता है ॥ ८ ॥ भगवान्‌ तो अकेले ही हैं । वे बहुत-से कर्म करने के लिये पुरुषरूप से प्रकृति के विभिन्न गुणों को एक साथ ही धारण करते हैं अथवा अनेकों अवतार ग्रहण करके उन्हें क्रमश: धारण करते हैं ? ॥ ९ ॥ मुनिवर ! आप वेद और ब्रह्मतत्त्व दोनों के पूर्ण मर्मज्ञ हैं, इसलिये मेरे इस सन्देहका निवारण कीजिये ॥ १० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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