Monday, January 29, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध--ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०४)

द्वारका में श्रीकृष्णका राजोचित स्वागत

निशम्य प्रेष्ठमायान्तं वसुदेवो महामनाः ।
अक्रूरश्चोग्रसेनश्च रामश्चाद्‍भुतविक्रमः ॥ १६ ॥
प्रद्युम्नः चारुदेष्णश्च साम्बो जाम्बवतीसुतः ।
प्रहर्षवेग उच्छशित शयनासन भोजनाः ॥ १७ ॥
वारणेन्द्रं पुरस्कृत्य ब्राह्मणैः ससुमङ्‌गलैः ।
शङ्‌खतूर्य निनादेन ब्रह्मघोषेण चादृताः ।
प्रत्युज्जग्मू रथैर्हृष्टाः प्रणयागत साध्वसाः ॥ १८ ॥
वारमुख्याश्च शतशो यानैः तत् दर्शनोत्सुकाः ।
लसत्कुण्डल निर्भात कपोल वदनश्रियः ॥ १९ ॥
नटनर्तकगन्धर्वाः सूत मागध वन्दिनः ।
गायन्ति चोत्तमश्लोक चरितानि अद्‍भुतानि च ॥ २० ॥

उदारशिरोमणि वसुदेव, अक्रूर, उग्रसेन, अद्भुत पराक्रमी बलराम, प्रद्युम्न, चारुदेष्ण और जाम्बवतीनन्दन साम्बने जब यह सुना कि हमारे प्रियतम भगवान्‌ श्रीकृष्ण आ रहे हैं, तब उनके मनमें इतना आनन्द उमड़ा कि उन लोगोंने अपने सभी आवश्यक कार्यसोना, बैठना और भोजन आदि छोड़ दिये। प्रेमके आवेगसे उनका हृदय उछलने लगा। वे मङ्गल शकुन के लिये एक गजराज को आगे करके स्वस्त्ययन-पाठ करते हुए और माङ्गलिक सामग्रियोंसे सुसज्जित ब्राह्मणोंको साथ लेकर चले। शङ्ख और तुरही आदि बाजे बजने लगे और वेदध्वनि होने लगी। वे सब हर्षित होकर रथोंपर सवार हुए और बड़ी आदरबुद्धिसे भगवान्‌की अगवानी करने चले ॥ १६१८ ॥ साथ ही भगवान्‌ श्रीकृष्णके दर्शनके लिये उत्सुक सैकड़ों श्रेष्ठ वारांगनाएँ, जिनके मुख कपोलोंपर चमचमाते हुए कुण्डलोंकी कान्ति पडऩेसे बड़े सुन्दर दीखते थे, पालकियोंपर चढक़र भगवान्‌की अगवानीके लिये चलीं ॥ १९ ॥ बहुत-से नट, नाचनेवाले, गानेवाले, विरद बखाननेवाले सूत, मागध और वंदीजन भगवान्‌ श्रीकृष्णके अद्भुत चरित्रोंका गायन करते हुए चले ॥ २० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से



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