Friday, January 5, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध--चौथा अध्याय..(पोस्ट ०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--चौथा अध्याय..(पोस्ट ०५)

महर्षि व्यासका असन्तोष

ऋग्यजुःसामाथर्वाख्या वेदाश्चत्वार उद्धृताः ।
इतिहासपुराणं च पञ्चमो वेद उच्यते ॥ २० ॥
तत्रर्ग्वेदधरः पैलः सामगो जैमिनिः कविः ।
वैशंपायन एवैको निष्णातो यजुषामुत ॥ २१ ॥
अथर्वाङ्‌गिरसामासीत् सुमन्तुर्दारुणो मुनिः ।
इतिहासपुराणानां पिता मे रोमहर्षणः ॥ २२ ॥
त एत ऋषयो वेदं स्वं स्वं व्यस्यन्ननेकधा ।
शिष्यैः प्रशिष्यैः तत् शिष्यैः वेदास्ते शाखिनोऽभवन् ॥ २३ ॥
त एव वेदा दुर्मेधैः धार्यन्ते पुरुषैर्यथा ।
एवं चकार भगवान् व्यासः कृपणवत्सलः ॥ २४ ॥
स्त्रीशूद्रद्विजबंधूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा ।
कर्मश्रेयसि मूढानां श्रेय एवं भवेदिह ।
इति भारतमाख्यानं कृपया मुनिना कृतम् ॥ २५ ॥

व्यासजीके द्वारा ऋक्, यजु:, साम और अथर्वइन चार वेदोंका उद्धार (पृथक्करण) हुआ। इतिहास और पुराणोंको पाँचवाँ वेद कहा जाता है ॥ २० ॥ उनमेंसे ऋग्वेदके पैल, साम-गानके विद्वान् जैमिनि एवं यजुर्वेदके एकमात्र स्नातक वैशम्पायन हुए ॥ २१ ॥ अथर्ववेदमें प्रवीण हुए दरुणनन्दन सुमन्तु मुनि। इतिहास और पुराणोंके स्नातक मेरे पिता रोमहर्षण थे ॥ २२ ॥ इन पूर्वोक्त ऋषियोंने अपनी-अपनी शाखाको और भी अनेक भागोंमें विभक्त कर दिया। इस प्रकार शिष्य, प्रशिष्य और उनके शिष्योंद्वारा वेदोंकी बहुत-सी शाखाएँ बन गयीं ॥ २३ ॥ कम समझवाले पुरुषोंपर कृपा करके भगवान्‌ वेदव्यासने इसलिये ऐसा विभाग कर दियाकि जिन लोगोंको स्मरणशक्ति नहीं है या कम है, वे भी वेदोंको धारण कर सकें ॥ २४ ॥ स्त्री, शूद्र और पतित द्विजातितीनों ही वेद-श्रवणके अधिकारी नहीं हैं। इसलिये वे कल्याणकारी शास्त्रोक्त कर्मोंके आचरणमें भूल कर बैठते हैं। अब इसके द्वारा उनका भी कल्याण हो जाय, यह सोचकर महामुनि व्यासजीने बड़ी कृपा करके महाभारत इतिहासकी रचना की ॥ २५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से 


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