Thursday, November 30, 2017

श्रीमद्भागवत माहात्म्य पहला अध्याय (पोस्ट.०१)

|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
  
कृष्णं नारायणं वंदे कृष्णं वंदे व्रजप्रियम् |
कृष्णं द्वैपायनं वंदे कृष्णं वंदे पृथासुतम् ||

श्रीमद्भागवत माहात्म्य
पहला अध्याय (पोस्ट.०१)

देवर्षि नारदकी भक्तिसे भेंट

सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे |
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयम नुमः||१||
यं प्रव्रजन्तमनुपेत्यमपेतकृत्यं
द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।
पुत्रेति तन्मयतया तववोऽभिनेदुः
तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥ २ ॥

सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान्‌ श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो जगत् की  उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिकतीनों प्रकारके तापों का नाश करनेवाले हैं ॥ १ ॥ जिस समय श्रीशुकदेवजी का यज्ञोपवीत-संस्कार भी नहीं हुआ था तथा लौकिक-वैदिक कर्मोंके अनुष्ठानका अवसर भी नहीं आया था, तभी उन्हें अकेले ही संन्यास लेनेके लिये घरसे जाते देखकर उनके पिता व्यासजी विरह से कातर होकर पुकारने लगे—‘बेटा ! बेटा ! तुम कहाँ जा रहे हो ?’ उस समय वृक्षों ने तन्मय होनेके कारण श्रीशुकदेवजी की ओर से उत्तर दिया था। ऐसे सर्वभूत-हृदयस्वरूप श्रीशुकदेवमुनि को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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