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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
कृष्णं
नारायणं वंदे कृष्णं वंदे व्रजप्रियम् |
कृष्णं
द्वैपायनं वंदे कृष्णं वंदे पृथासुतम् ||
श्रीमद्भागवत
माहात्म्य
पहला
अध्याय (पोस्ट.०१)
देवर्षि
नारदकी भक्तिसे भेंट
सच्चिदानन्द
रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे |
तापत्रय
विनाशाय श्री कृष्णाय वयम नुमः||१||
यं
प्रव्रजन्तमनुपेत्यमपेतकृत्यं
द्वैपायनो
विरहकातर आजुहाव ।
पुत्रेति
तन्मयतया तववोऽभिनेदुः
तं
सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥ २ ॥
सच्चिदानन्दस्वरूप
भगवान् श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश
के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक— तीनों प्रकारके तापों का नाश करनेवाले हैं ॥ १ ॥ जिस समय श्रीशुकदेवजी का
यज्ञोपवीत-संस्कार भी नहीं हुआ था तथा लौकिक-वैदिक कर्मोंके अनुष्ठानका अवसर भी
नहीं आया था, तभी उन्हें अकेले ही संन्यास लेनेके लिये घरसे
जाते देखकर उनके पिता व्यासजी विरह से कातर होकर पुकारने लगे—‘बेटा ! बेटा ! तुम कहाँ जा रहे हो ?’ उस समय वृक्षों
ने तन्मय होनेके कारण श्रीशुकदेवजी की ओर से उत्तर दिया था। ऐसे
सर्वभूत-हृदयस्वरूप श्रीशुकदेवमुनि को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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