Wednesday, March 13, 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--आठवाँ अध्याय..(पोस्ट ०६)

गर्भ में परीक्षित्‌ की रक्षा, कुन्ती के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और युधिष्ठिरका शोक

जन्मैश्वर्यश्रुतश्रीभिः एधमानमदः पुमान् ।
नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वां अकिञ्चनगोचरम् ॥ २६ ॥
नमोऽकिञ्चनवित्ताय निवृत्तगुणवृत्तये ।
आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नमः ॥ २७ ॥
मन्ये त्वां कालमीशानं अनादिनिधनं विभुम् ।
समं चरन्तं सर्वत्र भूतानां यन्मिथः कलिः ॥ २८ ॥

ऊँचे कुलमें जन्म, ऐश्वर्य, विद्या और सम्पत्तिके कारण जिसका घमंड बढ़ रहा है, वह मनुष्य तो आपका नाम भी नहीं ले सकता; क्योंकि आप तो उन लोगोंको दर्शन देते हैं, जो अकिंचन हैं ॥ २६ ॥ आप निर्धनोंके परम धन हैं। मायाका प्रपञ्च आपका स्पर्श भी नहीं कर सकता। आप अपने-आप में ही विहार करने वाले, परम शान्तस्वरूप हैं। आप ही कैवल्य मोक्ष के अधिपति हैं। आपको मैं बार-बार नमस्कार करती हूँ ॥ २७ ॥
मैं आपको अनादि, अनन्त, सर्वव्यापक, सबके नियन्ता, कालरूप परमेश्वर समझती हूँ। संसारके समस्त पदार्थ और प्राणी आपसमें टकराकर विषमता के कारण परस्पर विरुद्ध हो रहे हैं, परन्तु आप सब में समानरूप से विचर रहे हैं ॥ २८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से


श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

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